SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए भुजगारे भागाभागो १५३ भागा । अप्प० संखे० भागो । छण्णोक० अवहि० संखे भागो । $ ३११. आणदादि जाव उवरिमगेवजा ति मिच्छ०-अणंताणु० चउक्क० भुज० संखे०भागो। अप्प० संखेज्जा भागा। अवहि० अणंताणु० चउक्क० अवत्त० असंखे०भागो । सम्म० सम्मामि०-बारसक०-भय-दुगुंछ० देवोघो । पुरिस० कसायभंगो । इत्थि०-हस्स-रइ-अरइ-सोगाणमोघो । णवरि अवहि गत्थि। णवंस. इत्थिवेदभंगो। अणुदिसादि जाव अवराइदो त्ति मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-अणंताणुचउक०इत्थि०-णqसयवेदाणमेयपदत्तादो गत्थि भागाभागो। बारसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछ० आणदभंगो। हस्स-रइ-अरइ-सोगाणमोघो । णवरि अवढि० पत्थि । सबढे एवं चेव । णबरि वारसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछ० भुज० सब्बजी० केव० १ संखेज्जा भागा। अप्प०-अवहि० संखे०भागो। हस्स-रइ-अरइ-सोगाणमोघो । णवरि अवहि० गत्यि । एवं जाच अणाहारि त्ति । ___ भागाभागो समत्तो। ६ ३१२. परिमाणाणुगमेण दुविहो गिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण शोककी भुजगारविभक्तिवाले जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । अल्पतरविभक्तिवाले जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं । छह नोकषायोंकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। ६३११. आनतकल्पसे लेकर उपरिम वेयकतकके देवोंमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी भुजगारविभक्तिवाले जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। अल्पतरविभक्तिवाले जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । अवस्थितविभक्तिवाले जीव और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है । पुरुषवेदका भङ्ग कषायोंके समान है। स्त्रीवेद, हास्य, रति, अरति और शोकका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि अवस्थितविभक्ति नहीं है। नपुंसकवेदका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है। अनुदिशसे लेकर अपराजित विमानतकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका एक पद होनेसे भागाभाग नहीं है। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साका भङ्ग श्रानतकल्पके समान है। हास्य, रति, अरति और शोकका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि अवस्थितविभक्ति नहीं है । सर्वार्थसिद्धि में इसीप्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी भुजगारविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। अल्पतर और अवस्थितविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण हैं। हास्य, रति, अरति और शोकका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि अवस्थितविभक्ति नहीं है। इसीप्रकार अनाहारकमार्गणा तक जानना चाहिए। इसप्रकार भागाभाग समाप्त हुआ। $ ३१२. परिणामानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- श्रोध और आदेश । २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy