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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे - [पदेसविहत्ती ५ ॐ पञ्चक्खाणमाणे जहण्णपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । * कोहे जहएणपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । * मायाए जहण्णपदेससंतकम्म विसेसाहियं । * लोहे जहणणपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । $ २७४. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि। * पुरिसवेदे जहण्णपदेससंतकम्ममणंतगुणं । $ २७५. कुदो ? देसघाइत्तादो बहूणं परिणामिकारणाणमुवलंभादो । * इत्थिवेद जहण्णपदेससतकम्म संखेज्जगुणं।
$ २७६. कुदो ? पुरिसवेदबंधगदादो इत्थिवेदबंधगदाए संखे०गुणत्तादो । एत्य चोदओ भणइ, कथं वेछावहिसागरोवमाणि परिभमिय एइदिएमुप्पण्णपढमसमए जहण्णभावमुवगयस्सेदस्स तव्विवरीदसरूवादो पुरिसवेददव्वादो असंखेज्जगुणहीणत्तं मुच्चा संखेज्जगुणत्तं जुज्जदे । ण च एदमविवक्खिय एइंदियजहण्णसंतकम्मस्सेव संगहो त्ति वोत्तुं जुत्तं, एदम्हादो तस्स असंखे०गुणत्तेण जहण्णभावाणुववत्तीदो तदविवक्खाए फलाणुवलंभादो च । तदो ण एदं मुत्तं समंजसमिदि । एत्थ परिहारो वुच्चदे--ण एसो
* उससे प्रत्याख्यान मानमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यान क्रोधमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यान मायामें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । * उससे प्रत्याख्यान लोभमैं जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। ६ २७४. ये सूत्र सुगम हैं। * उससे पुरुषवेदमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म अनन्तगुणा है । ६ २७५. क्योंकि देशघाति होनेसे इसके परिणमन करानेके बहुतसे कारण पाये जाते हैं। * उससे स्त्रीवेदमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म संख्यातगुणा है। ६ २७६. क्योंकि पुरुषवेदके बन्धक कालसे स्त्रीवेदका बन्धक काल संख्यातगुणा है ।
शंका--यहाँ पर शंकाकार कहता है कि दो छयासठ सागर काल तक परिभ्रमण करके एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें जघन्य भावको प्राप्त हुआ वेद उसके विपरीत स्वभाववाला होनेसे पुरुषवेदके द्रव्यसे असंख्तातगुणे हीनको छोड़कर संख्यातगुणा कैसे बन सकता है। यदि कहा जाय कि इसकी अविवक्षा करके एकेन्द्रियके जघन्य सत्कर्मका ही संग्रह किया है सो ऐसा कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इससे एकेन्द्रियका जघन्य सत्कर्म असंख्यातगुणा होनेसे जघन्यभावकी उत्पत्ति नहीं हो सकती और उसकी अविवक्षा करनेमें कोई फल नहीं उपलब्ध होता, इसलिए यह सूत्र ठीक नहीं है ?
समाधान-यहाँ इस शंकाका परिहार करते हैं इस स्त्रीवेदके जघन्य स्वामीको दो
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