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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
९ २६१. धुवबंधितेण हस्स- रइवंधगद्धाए वि एदिस्स बंधुलंभादो ।
* भए जहण्णपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।
९२६२. दोन्हं पि मोहणीयस्स दसमभागते कुदो हीणाहियभावो १ न पयडिविसेसमस्सियूण तहा भावुवलं भादो ।
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* माणसंजलणे जहणपदेस संतकम्मं विसेसाहिय । ९ २६३. मोहणीयसव्वदव्वस्स अट्ठमभागत्तादो ।
* कोहस जलणे जहणपदेस संतकमं विसेसाहिय ं । * मायास जळणे जहणपद ससंतकम्म' विसेसाहियौं । * लोहसंजलणे जहणपदे सस तकम्म' विसेसाहिय ।
[ पदेसविहत्ती ५
२६४. एदाणि तिरिण वि सुत्ताणि अन्यंतरीकयपयडिविसेसकारणाि सुगमाणि । संपहि देण गिरयगइ सामण्ण पडिबद्ध जहण्णप्पा बहुअदंडएण सगंतो - णिक्खित्तासेस णिरय गइ मग्गणावयणेण पुध पुध सत्तण्हं पि पुढवीणमप्पा बहुअं परुविदं चेव । णवरि सामित्त विशेसो तदनुसारेण च गुणयारविसेसो णायव्वो । णत्थि अण्णा विसेस |
एवं णिरयगइजहण्णदंडओ समतो |
$ २६१. क्योंकि यह ध्रुवबन्धिनी प्रकृति होनेसे हास्य और रतिके बन्धकाल में भी इसका बन्ध पाया जाता है।
* उससे भयमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
९२६२. शंका – ये दोनों प्रकृतियाँ मोहनीयके दसवें भागप्रमाण हैं, इसलिए इनके प्रदेशों में हीनाधिकपना कैसे बन सकता है ?
समाधान -- नहीं, क्योंकि प्रकृतिविशेष के आश्रयसे उस प्रकार हीनाधिकरूपसे प्रदेश पाये जाते हैं ।
* उससे मानसं ज्वलनमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
$ २६३, क्योंकि मोहनीयके सब द्रव्यके आठवें भागप्रमाण इसका द्रव्य है । * उससे क्रोधसंज्वलनमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । * उससे मायासंज्वलनमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
* उससे लोभसंज्वलनमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
$ २६४. ये तीनों ही सूत्र सुगम हैं, क्योंकि इन सूत्रोंमें जितना अल्पबहुत्व कहा है वे अलग अलग प्रकृतियाँ हैं । अब समस्त नरकगतिके अन्तर्भेद नरकगतिमें अन्तलीन हैं, इसलिए नरकगति सामान्यसे सम्बन्ध रखनेवाले इस अल्पबहुत्व दण्डकके द्वारा अलग अलग सातों ही पृथिवियोंका अल्पबहुत्व कह ही दिया है। इतनी विशेषता है कि स्वामित्वविशेष जान लेना चाहिए । यहाँ अन्य कोई विशेषता नहीं है ।
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