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________________ ११२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे ..... [पदेसविहत्ती ५ लोभजहण्णदव्वादो अणंतगुणमेव । किं पुण तदो असंखे० गुणपंचिंदियघोलमाणजहण्णजोगबदसमयपबद्धस्स असंखेजभागमेत्तचरिमफालिदवमिदि वुत्तं होदि। . * माणसंजलणे जहण्णपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।। $ २२७. एत्थ कारणं वुच्चदे--कोहसंजलणजहण्णदव्वमेगसमयपबद्धमत्तं होद्ण मोहसव्वदबस्स चउम्भागप्रमाणं, चउब्धिहबंधगेण बदत्तादो । एदं पुण एगसमयपबद्धमोहणीयदव्वस्स तिभागमेतं माण-माया-लोभेसु तिहा विहंजिय हिदत्तादो । तदो विसेसाहियत्तं जुज्जदे तिभागब्भहियमिदि उतं होदि । एत्थ संदिहीए चउवीस २४ पमाणमोहणी पदबपडिबदाए अव्वुप्पण्णसिस्साणं पबोहो कायव्यो। .. ® पुरिसवेदे जहएणपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।। २२८. कुदो ? मोहणीयदव्वस्स दुभागपमाणत्तादो । तं पि कुदो ? पंचविधबंधयस्स मोहणीयसमयपबद्धमेत्तणोकसायभागभागितादो मोहणीयतिभागमेत्तमाणसंजलणदव्वादो तदद्धमेत्तपुरिसवेददव्वं दुभागेणब्भहियं होदि ति भावत्यो । लोभके जघन्य द्रव्यसे अनन्तगुणा ही है। तिसपर चरम फालिका द्रव्य सूक्ष्म निगोदियाके जघन्य उपपादयोगसे असंख्यातगुणे पंचेन्द्रियके घोलमाण जघन्य योगद्वारा बांधे गये समयप्रबद्धके असंख्यातवें भागप्रमाण है इसलिए उसका कहना ही क्या है यह इसका तात्पर्य है । * उससे मानसंज्वलनमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। ६२२७. अब यहाँ इसका कारण कहते हैं-क्रोधसंज्वलनका जघन्य द्रव्य एक समयप्रबद्धप्रमाण होता हुआ भी मोहके सब द्रव्यके चौथे भागप्रमाण है, क्योंकि उसका संज्वलनोंका बन्ध होते समय बन्ध हुआ है, किन्तु वह एक समयप्रबद्धप्रमाण होता हुआ भी मोहनीयके सब द्रव्यका तीसरा भाग है, क्योंकि वह मान, माया और लोभ इन तीनों भागोंमें विभक्त होकर स्थित है। इसलिए जो क्रोध संज्वलनके जघन्य द्रव्यसे मान संज्वलनका जघन्य द्रव्य विशेष अधिक कहा है वह युक्त है। क्रोधसंज्वलजके जघन्य द्रव्यसे मानसंज्वलनका जघन्य द्रव्य तीसरा भाग अधिक है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब यहाँ संदृष्टिसे मोहिनीयके सब द्रव्यको २४ मानकर अव्युत्पन्न शिष्योंको ज्ञान कराना चाहिये। उदाहरण-मोहनीयका सब द्रव्य २४; संज्वलन क्रोध ६, संज्वलन मान ६, संज्वलन माया ६, संज्वलन लोभ ६। संज्वलन क्रोधकी बन्ध व्युच्छिति हो जाने पर संज्वलन मानका जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है उस समय, संज्वलनमान ८, माया ८, लोभ ८ इसप्रकार बँटवारा होता है। ८-६%२०१ ® उससे पुरुषवेदमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ २२८. क्योंकि यह सब मोहनीय द्रव्यके दूसरे भाग प्रमाण है। शंका--यह सब मोहनीय द्रव्यके दूसरे भाग प्रमाण कैसे है ? समाधान-- जो जीव पुरुषवेद और चार संज्वलन इन पाँच प्रकृतियोंका बन्ध कर रहा है उसके मोहनीयका जो समयप्रबद्ध नोकषायको प्राप्त होता है वह सब पुरुषवेदको मिल जाता है, इसलिये यह सब मोहनीय द्रव्यके दूसरे भाग प्रमाण है। इसका यह आशय है कि मोहनीयके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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