________________
गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूवणा
८१ पुरिसवेदबंधगदामेत्तेण विसेसाहियत्तुवलंभादो ।
ॐ भये उफस्सपदेससंतकम्म विसेसाहियं ।
१४५. केत्तियमेत्तेण ? दुगुंछादव्वे आवलियाए असंखे भागेण खंडिदे तत्य एयखंडमेत्तेण ।
* पुरिसवेदे उक्कस्सपद ससंतकम्म विसेसाहिय ।
$ १४६. केत्तियमेत्तेण ? भयदव्वे आवलियाए असंखे० भागेण खंडिदे तत्थ एयखंडमेत्तेण ।
* कोधसं जलणे उक्कस्सपदेससंतकम्म सखेजगुणं ।
१४७. को गुणगारो ? सादिरेयछरूवाणि । तं जहा—मोहणीयदव्वस्स अद्धं णोकसायभागो । कसायभागो वि एत्तिओ चेव । तत्थ हस्स-सोगाणमेगो, रदिअरदीणमेगो, भयस्स अण्णेगो,' दुगुंछाए अवरेगो, वेदस्स अण्णेगो त्ति । एवं गोकसायदव्वे पंचहि विहत्ते पुरिसवेददव्वं मोहणीयदव्वस्स दसमभागमेत्तं । कोहसंजलणदव्य' काल ईशान कल्पमें गये हुए जीवोंके खीवेद और पुरुश्वेदके बन्धक कालप्रमाण होनेसे विशेष अधिक उपलब्ध होता है।
* उससे भयमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
६ १४५. कितना अधिक है ? जुगुप्साके द्रव्यमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है।
* उससे पुरुषवेदमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
६१४६. कितना अधिक है ? भयके द्रव्यमें श्रावलिके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है।
* उससे क्रोध संज्वलनमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म संख्यातगुणा है।
$ १४७. गुणकार क्या है ? साधिक छह अंक गुणकार है। यथा-मोहनीयके द्रव्यका अर्ध भागप्रमाण नोकषायका द्रव्य है । कषायका हिस्सा भी इतना ही है। नोकषायोंके द्रव्यमेंसे हास्य और शोकका एक भाग है, रति और अरतिका एक भाग है, भयका अन्य एक भाग है, जुगुप्साका अन्य एक भाग है और वेदका अन्य एक भाग है। इस प्रकार नोकपायके द्रव्यमें पाँचका भाग देने पर पुरुषवेदका द्रव्य मोहनीयके द्रव्यके दसवें भागप्रमाण प्राप्त होता है । १। क्रोधसंज्वलनका द्रव्य भी मोहनीयके द्रव्यके पाँच बटे आठ भागप्रमाण प्राप्त होता है,
१. ता. प्रतौ 'हस्ससोगाणमेगो भयस्स अरणेगो' इति पाठः । २. ता. प्रतौ । 'कोहसंजलणदच' इति पाठः ।
..
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org