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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[पदेसविहत्ती ५ विहाणपदिदा-अणंतभागभ० असंखे०भागव्यहिया वा । एवं रदीए ।
$ १२०. अरदि० जह० पदे०विहत्तिओ बारसक०-सत्तणोक० णियमा अज० असंखे० भागभ० । सोगस्स णियमा० तं तु विहाणपदिदा-अणंतभागब्भ० असंखे० भागभ० वा । एवं सोगस्स । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
६१२१. भावो सव्वत्थ ओदइओ भावो । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि ति ।
* अप्पाबहुअं। ६ १२२. सुगममेदं।
8 सव्वत्योवमपञ्चक्खाणमाणे उकस्सपदेससंतकम्मं ।
६ १२३. सत्तमाए पुढवीए गुदिकम्मंसियणेरइयम्मि तेत्तीसाउअचरिमसमए वट्टमाणम्मि जदि वि उक्कस्सं जादं तो वि थोवं, साहावियादो। भाग अधिक होती है। रतिको नियमसे जघन्य प्रदेशविभक्ति भी होती है और अजघन्य प्रदेशविभक्ति भी होती है । यदि अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है तो वह दो स्थान पतित होती है-या तो अनन्तवें भाग अधिक होती है या असंख्यातवें भाग अधिक होती है। इसी प्रकार रतिकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
१२०. अरतिकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके बारह कषाय और सात नोकषायोंकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है । शोककी नियमसे जघन्य प्रदेशविभक्ति भी होती है और अजघन्य प्रदेशविभक्ति भी होती है। यदि अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है तो वह दो स्थान पतित होती है-या तो अनन्त भाग अधिक होती है या असंख्यातवें भाग अधिक होती है। इसी प्रकार शोककी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानकर ले जाना चाहिए।
विशेषार्थ—पहले जघन्य स्वामित्वका निर्देश कर आये हैं। उसे देखकर ओघ और आदेशसे जघन्य सन्निकर्ष घटित कर लेना चाहिए। जहां कुछ विशेषता है या तन्त्रान्तरसे भिन्न मतका निर्देश किया है वहां वीरसेनस्वामीने उसका अलगसे विचार किया ही है।
इस प्रकार सन्निकर्ष समाप्त हुआ। ६१२१. भाव सर्वत्र औदयिक भाव है । इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए।
इस प्रकार भाव समाप्त हुआ। ॐ अल्पबहुत्व । ६ १२२. यह सूत्र सुगम है।
8 अप्रत्याख्यान मानमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म सबसे स्तोक है ।
$ १२३. सातवीं पृथिवीमें गुणितकांशिक नारकीके तेतीस सागर आयुके अन्तिम समयमें विद्यमान रहते हुए यद्यपि अप्रत्याख्यान मानका द्रव्य उत्कृष्ट हुआ है तो भी वह स्तोक है, क्योंकि ऐसा स्वभाव है।
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