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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ खविदगुणिदघोलमाणदंसणमोहणीयक्खवयपडिसेहटुं 'गुणिदकम्मंसिओ' त्ति भणिदं । दंसणमोहणीयक्खवणद्धाए अंतोमुहुत्तमेत्ताए वट्टमाणस्स सव्वत्थ उक्स्ससामित्ते पत्ते तप्पदेसजाणावणटुं 'जम्मि मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्ते पक्खित्तं तम्मि सम्मामिच्छत्तस्स उकस्सपदेसविहत्तिओ' ति भणिदं । मिच्छादिट्ठी सत्तमाए पुढवीए णेरइयचरिमसमए मिच्छत्तस्स कदउक्कस्सपदेससंतकम्मो तत्तो णिप्पिडिदृण तिरिक्खेसु दो-तिण्णिभवग्गहणाणि परिभमिय पुणो मणुस्सेसु उववण्णो । तदो गन्मादिअहवस्साणमुवरि उवसमसम्मत्ताभिमुहो जहाकमेण अधापवत्त-अपुव्व-अणियट्टिकरणाणि करेदि । तत्थ अपुव्वकरणकालम्मि द्विदिखंडय-गुणसेढीकिरियाओ करेमाणओ जहण्णपरिणामेहि चेव करावेयव्वो, अण्णहा अधडिदिगलणेण बहुदव्वविणासप्पसंगादो। अणियट्टिकरणे पुण अघट्टिदिगलणेण गलमाणदव्वं ण रक्खिदुं सकिञ्जदे, तत्थ जहण्णुकस्सपरिणामविसेसाभावादो। - ९९. संपहि अपुव्व-अणियट्टिकरणद्धासु कीरमाणकिरियाओ विसेसिदण भणिस्सामो। तं जहा-अपुवकरणपढमसमए जहण्णपरिणामेण अपव्वकरणद्धादो अणियट्टिकरणद्धादो च विसेसाहियं गुणसेटिं करेमाणो उदयावलियबाहिरहिदिं पडि द्विदमिच्छत्तपदेसग्गं ओकडकड्डणभागहारेण समयाविरोहेण खंडिय तत्थ लद्धेगखंड पुणो असंखेज्जलोगभागहारेण खंडेदूणेगखंडं घेत्तूण उदयावलियाए णिसिंचमाणो है' ऐसा कहा है । क्षपित कर्मा शवाले और क्षपित गुणित घोलमान कर्मा शवाले दर्शनमोहनीय क्षपकका प्रतिषेध करनेके लिये 'गुणितकाश' कहा । दर्शनमोहनीयके क्षपणका काल अन्तर्मुहूर्त मात्र है । उस काळमें वर्तमान जीवके सर्वदा उत्कृष्ट स्वामित्व प्राप्त हुआ, अतः उसका स्थान बतलानेके लिये 'जिस समय मिथ्यात्वका सम्यग्मिथ्यात्वमें निक्षेपण करता है उस समय सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका स्वामी होता है। ऐसा कहा है। सातवें नरकमें नरकसम्बन्धी भवके अन्तिम समयमें मिथ्यात्व कर्मका उत्कृष्ट प्रदेशसंचय करनेवाला मिथ्यादृष्टि जीव वहाँसे निकलकर तिर्यश्चोंमें दो तीन भवग्रहणतक भ्रमण करके पुनः मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। गर्भसे लेकर आठ वर्षके बाद उपशमसम्यक्त्वके अभिमुख होकर वह जीव क्रमसे अधः प्रवृत्त करण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणको करता है। अपूर्वकरणके काल में स्थितिकाण्डक और गुणश्रेणि क्रियाएँ करते हुए जघन्य परिणामोंसे ही करानी चाहिये, अन्यथा अधःस्थिति गलनाके द्वारा बहत द्रव्यके विनाशका प्रसंग प्राप्त होता है। किन्त अनिवृत्तिकरणमें अधःस्थितिगलनाके द्वारा गलनेवाले द्रव्यको रक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि वहाँ जघन्य और उत्कृष्ट परिणामोंका भेद नहीं है।
६९९. अब अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालमें की जानेवाली क्रियाओंको विस्तारसे कहते हैं । यथा-अपूर्वकरणके प्रथम समयमें जघन्य परिणामसे अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालसे कुछ अधिक गुणश्रेणिको करता है । ऐसा करते हुए उदयावलिसे बाहरकी स्थिति में विद्यमान मिथ्यात्वके प्रदेशोंको आगमानुसार अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारसे भाजित करके लब्ध एक भागको फिर भी असंख्यात लोकप्रमाण भागहारसे भाजित करके जो एक भाग लब्ध
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