SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८४ जयधवलासहीदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ कसाया तेण किं ण उवसामिदा ? ण, तत्थ गुणसेढीए णिजरिजमाणदव्वादो लोभसंजलणस्स आगच्छमाणदव्वस्स बहुत्तुवलंभादो। ओकड्डणभागहारादो अधापवत्तभागहारो असं गुणो त्ति आयादो वओ तत्थ असं०गुणो किं ण जायदे ? ण, ओकड्डिददव्वस्स असं०भागमेत्तदव्वस्सेव गुणसेढिसरूवेण रयणुवलंभादो। किं च वयादो आओ असं०गुणो, अपुवकरणपढमसमयप्पहुडि जावाणुपुव्विसंकमपढमसमओ त्ति इत्थि-णउंसयवेद-छण्णोकसायदव्वस्स गुणसंकीण लोभसंजलणम्मि संकतिदसणादो। जेणेवमुवसमसेटिं चडमाणजीवलोभसंजलणदव्वस्स वही चेव तेण कसाया सकिं पि ण उवसामिदा त्ति मुहासियं । एवं सेससुत्तावयवाणं पि जाणिदण अत्थपरूवणा कायव्वा । * एदमादि कादूण जावुकस्सयं संतकम्मं णिरंतराणि हाणाणि । ६४४३. एदस्स जहण्णदव्वस्सुवरि परमाणुत्तरादिकमेण वड्ढावेदव्वं जाव णिजराए ऊणपढमसमयअपुव्वकरण म्मि संचिददव्वति । ण तत्थ संचओ असिद्धो, अधापवत्तसंजदगुणसेढिणिजरादो गुणसंकीण अपुव्वकरणपढमसमए आगयदव्वस्स असं०गुणत्तुवलंभादो। एवं पड्डिदूण हिदेण सह पढमसमयापुवकरणस्स लोभसंजलणदव्व सरिसं। संपहि एदेण कमेण वड्डाविय उवरि चडावेदव्व जाव मायादव पडिच्छिद्रण हिदपढमसमओ त्ति । पुणो तत्थ हविय चत्तारि परिसे शंका-यदि ऐसा है तो उसके द्वारा कषायोंका उपशम क्यों नहीं कराया गया। समाधान-नहीं, क्योंकि वहां पर गुणश्रेणिके द्वारा निर्जराको प्राप्त होनेवाले द्रव्यसे लोभसंज्वलनको प्राप्त होनेवाला द्रव्य बहुत होता है। शंका-अपकर्षणभागहारसे अधःप्रवृत्तभागहार असंख्यातगुणा है, इसलिए वहाँ पर आयसे व्यय असंख्यातगुणा क्यों नहीं हो जाता है। समाधान-नहीं, क्योंकि अपकर्षणको प्राप्त हुए द्रव्यका असंख्यातवां भागमात्र द्रव्य ही गुणश्रेणिरूपसे रचनाको प्राप्त होता है। दूसरे व्ययसे आय असंख्यातगुणी होती है, क्योंकि अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर आनुपूर्वीसंक्रमके प्रथम समय तक स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और छह नोकषायोंके द्रव्यका गुणसंक्रमण देखा जाता है। चूंकि इस प्रकार उपशमणि पर चढ़नेवाले जीवके लोभ संज्वलनके द्रव्यकी वृद्धि ही होती है, इसलिए कषायोंका उपशम नहीं कराया है ऐसा जो कहा है वह ठीक हो कहा है। इस प्रकार सूत्रके शेष पदोंकी भी जानकर प्ररूपणा करनी चाहिए। ॐ इससे लेकर उत्कृष्ट सत्कर्मके प्राप्त होने तक निरन्तर स्थान होते हैं । $ ४४३. इस जघन्य द्रव्यके ऊपर एक एक परमाणु अधिकके क्रमसे निर्जरासे रहित अपूर्वकरणके प्रथम समयमें सश्चित हुए द्रव्यके प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिए। और वहां पर सवय असिद्ध नहीं है, क्योंकि अधःप्रवृत्तसंयत गुणश्रेणि निर्जरासे गुणसंक्रमके द्वारा अपूर्वकरणके प्रथम समयमें आया हुआ द्रव्य असंख्यातगुणा उपलब्ध होता है। इस प्रकार बढ़ कर स्थित हुए द्रव्यके साथ प्रथम समयवर्ती अपूर्वकरण लोभसंज्वलनसम्बन्धी द्रव्य समान है। अब इस क्रमसे बढ़ाकर मायाके द्रव्यको संक्रमित कर स्थित हुए प्रथम समयके प्राप्त होने तक ऊपर चढ़ाना चाहिए। पुनः वहाँ पर स्थापित कर चार पुरुषोंका भाश्नय कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy