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________________ गा २२ उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं हिदखवगहाणं एगफालिसामिणो उक्कस्सगत्थट्ठाणादोहेडिमदरूऊणअधापवत्तभागहारमेत्तदुचरिमफालिहाणेसु तदियादो उवरि चउत्थादो हेहा उप्पञ्जदि ति एगफालिक्खवगस्स हेहिमसव्वगथहाणंतरेसु विदियपरिवाडीए तिचरिमफालिविसेसहाणाणि उप्पण्णाणि त्ति घेत्तव्वं । एवं उवरि वि जाणिदूण णेदव्वं जाव तिभागूणुकस्सजोगो त्ति । एत्यंतरे तिण्णिफालिसामिणो उकस्सगत्थडाणादो हेहा सव्वत्थ विदियपरिवाडीए तिचरिमफालिविसेसहाणाणि उप्पजंति, सवेदचरिम-दुचरिमसमएसु पक्खेउत्तरतिभ गूणजोगे तिचरिमसमए उकस्सजोगपक्खेवभागहारं रूऊणधापवत्तभागहारेण खंडिय तत्थेगखंडं विसेसाहियं हेहा ओदरिदूण द्विदजोगट्टाणेण बंधाविय अधियारतिचरिमसमए अवडिदक्खवगहाणस्स तिण्णिफालिक्खवगुकस्सगत्थट्ठाणस्स हेडिमअंतरे समुप्पत्तिदंसणादो। ४१२. पुणो गफालिक्खवगो पक्खेउत्तरकमेण वढावेदव्वो जावुक्कस्सजोग पसो त्ति । एवं वड्डाविय पुणो गत्यहाणेण सह सरिसं कादण एत्थतणकिरियाकप्पो उच्चदे । तं जहा-सवेददुचरिमसमए उकस्सजोगेण चरिम-तिचरिमसमएसु तिभागूणुक्कस्सजोगेण बंधिय अधियारतिचरिमसमए अवटिदखवगहाणं पुग्विल्लगंथहाणादो विसेसाहियं, चडिदद्धाणमेत्तदुचरिमफालीणं अहियत्तुवलंभादो। संपहि समीकरणटुं रूऊणधापवत्तभागहारेणोवट्टिदचडिदद्धाणमेगफालिक्खवगो ओदारेदव्यो । एवमोदारिय उत्कृष्ट ग्रन्थस्थानसे नीचे दो रूप कम अधप्रवृत्तभागहारमात्र द्वि चरम फालिस्थानों में तृतीयसे ऊपर और चतुर्थसे नीचे उत्पन्न होता है, इसलिए एक फालिक्षपकके अधस्तन सब प्रन्थस्थानोंके अन्तरालोंमें द्वितीय परिपाटीके अनुसार त्रिनरिम फालिविशेषस्थान उत्पन्न हुए हैं ऐसा यहाँ पर ग्रहण करना चाहिए। तथा इसी प्रकार ऊपर भी त्रिभाग कम उत्कृष्ट योगके प्राप्त होने तक जानकर ले जाना चाहिए। यहां अन्तरालमें तीन फालिस्वामीके उत्कृष्ट प्रन्थस्थानसे नीचे सर्वत्र द्वितीय परिपाटीके अनुसार त्रिचरम फालिविशेषस्थान उत्पन्न होते हैं, क्योंकि सवेदभागके चरम और द्विचरम समयमें प्रक्षेप अधिक त्रिभाग योगरूप त्रिचरम समयमें उत्कृष्ट योग प्रक्षेपभागहारको एक कम अधःप्रवृत्त भागहारसे भाजितकर वहां विशेष अधिक एक खण्ड नीचे उतरकर स्थित हुए योगस्थानके द्वारा बन्ध कराकर अधिकृत त्रिचरम समयमें अवस्थित हुए क्षपकस्थानकी तीन फालिक्षपकसम्बन्धी उत्कृष्ट ग्रन्थस्थानके नीचे अन्तरालमें उत्पत्ति देखी जाती है। ६४१२. पुनः एक फालिक्षपकको एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे उत्कृष्ट योगके प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिए। इस प्रकार बढ़ाकर पुनः मन्थस्थानके साथ सहश करके यहों के क्रियाकल्पका कथन करते हैं। यथा-सवेद भागके द्विचरम समयमें उत्कृष्ट योगसे तथा चरम और त्रिचरम समयमें त्रिभाग कम उत्कृष्ट योगसे बन्धकर अधिकृत त्रिचरम समयमें अवस्थित क्षपकस्थान पहलेके ग्रन्थस्थानसे विशेष अधिक है, क्योंकि आगे गये हुए अध्वानमात्र द्विचरम फालियोंकी अधिकता उपलब्ध होती है। अब समीकरण करनेके लिए एक कम अधःप्रवृत्तभागहारसे भाजित आगे गये हुए अध्वानमात्र एक फालिक्षपकको उतारना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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