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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ३६१ पुणो एगफालिक्खवगो वड्ढावेदव्वो जाव उक्कस्सजोगहाणं पत्तो ति । एवं वड्डाविदे छ'फालिसामिणो उक्स्सचरिमफालिट्ठाणादो हेट्ठा दुगुणरूऊणधापवत्तभागहारमेत्तचरिमफालिट्ठाणाणमंतराणि मोत्तण अण्णत्थ सव्वत्थ वि तिचरिमफालिविसेसट्ठाणाणि समुप्पणाणि । ४०८. संपहि छप्फालीओ अस्सिदूण एत्तियाणि चेव उप्पजंति ण वड्डिमाणि । तेण दसफालीओ घेत्तूण तिचरिमविसेसट्टाणाणं परूवणं कस्सामो। तं जहासवेदचरिम-दुचरिम-तिचरिम-चदुचरिमसमएसु चदुभागूणुक्कस्सजोगेण बंधिय अधियारचदुचरिमसमए अवविदक्खवगस्स दसफालिहाणं उकस्सछप्फालिहाणादो विसेसाहियं । पुणो एत्थ समकरणविधाणं जाणिण कायव्वं । एवं पंचभागूण-छब्भागूणादिफालोओ घेत्तण सरिसं करिय जाणिदूण वत्तव्वं जाव दुसमयूणदोआवलियमेत्तसमयपबद्धाणमुक्कस्सचरिमफालिट्ठाणादो हेवा दुगुणदुरूवूणअधापवत्तभागहारमेत्तचरिमफालिहाणंतराणि मोत्तूण अण्णत्थ सव्वत्थ वि तिचरिमफालिविसेसटाणाणि समुप्पण्णाणि त्ति । एवं तिचरिमविसेसहाणेसु पढमपरिवाडी समत्ता । ६४०९. संपहि तेसिं चेव विदियपरिवाडी उच्चदे । तं जहा-चरिम-दचरिम-तिचरिमसमएसु घोलमाणजहण्णजोगण पंधिय अधियारतिचरिमसमए हिदखवगछप्फालिहाणं घोलमाणजहण्णजोगादो तिगुणं सादिरेयमेत्तद्धाणं गतूण द्विदएगफालिक्खवगहाणेण पुनः एक फालिक्षपकको उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिए । इस प्रकार बढ़ाने पर छह फालिस्वामीके उत्कृष्ट चरम फालिस्थानसे नीचे दूने एक कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र चरम फालस्थानोंके अन्तरालोंको छोड़कर अन्यत्र सर्वत्र ही त्रिचरम फालि विशेषस्थान उत्पन्न हुए। ४०८. अब छह फालियोंका आश्रय कर इतने ही उत्पन्न होते हैं वृद्धिरूप नहीं, इसलिए दस फालियोंको ग्रहण कर त्रिचरम विशेषस्थानोंका कथन करते हैं। यथा-सवेद भागके चरम, द्विचरम, त्रिचरम और चतुश्चरम समयों में चतुर्थ भाग कम उत्कृष्ट योगसे बन्धकर अधिकृत चतुश्चरम समयमें अवस्थित हुए क्षपकका दस फालिस्थान उत्कृष्ट छह फालिस्थानसे विशेष अधिक है । पुनः यहां पर समीकरण विधानको जानकर करना चाहिए। इस प्रकार पाँच भाग कम और छह भाग कम आदि फालियोंको ग्रहणकर तथा सदृशकर दो समय कम दो आवलिमात्र समयप्रबद्धोंके उत्कृष्ट चरम फालिस्थानोंसे नीचे दूने दो रूप कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र चरम फालिस्थानोंके अन्तरालोंको छोड़कर अन्यत्र सर्वत्र ही त्रिचरम फालिविशेषस्थानोंके उत्पन्न होने तक जानकर कहना चाहिए। इस प्रकार विचरम विशेषस्थानों में प्रथम परिपाटी समाप्त हुई । ६४०९. अब उन्हींकी दूसरी परिपाटोका कथन करते हैं। यथा-चरम, द्विचरम और त्रिचरम समयोंमें घोलमान जघन्य योगसे बन्धकर अधिकृत त्रिचरम समयमें स्थित हुए क्षपकका छह फालिस्थान घोलमान जघन्य योगसे साधिक तिगुणे मात्र अध्वान जाकर स्थित हुए एक फालिक्षपक स्थानके समान होता है, इसलिए पुनरुक्त है। अब दो फालिक्षपकके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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