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________________ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ पदेस विहती ५ अवदिक्खवगट्ठाणं पुव्विल्लहाणादो विसेसाहियं चडिदद्वाणमेत्तदुचरिमफालीणं श्रयित्वभादो | तेण रूऊणधापवत्तभागहारेणोव विदच डिदद्वाणमेत्त मेगफालिक्खवगमोदरिय तिष्णफा लिक्खवगे पक्खेवुत्तरतिभागूणुक्कस्सजोगं णीदे तिचरिमफालि विसेसद्वाणं पुणरुत्तं होदि, पुव्वं नियत्ताविदट्ठाणस्सेव समुप्पण्णत्तादो । संपहि इममेत्थेव विय पुणो एगफालिक्खवग पक्खेवुत्तरकमेण वढावेदव्यो जावुक्कस्सजोगं पत्तो त्ति । $ ४०७, संपहि तिणिफा लिक्खवगं तिभागूणुकस्सजोगं दूण चरिमफालिट्ठाणेण समाणं करिय पुणो एत्थ किरियाविसेसो उच्चदे । तं जहा - सवेदचरिमसमए दुचरिमसमए च उकस्सजोगेण तिचरिमसमए विभागूणुकस्सजोगेण बंधिय अधियारतिचरिमसमए अवदिक्खवगडाणं पुब्बिल्लहाणादो विसेसाहियं चडिदडाण मे चदुचरिम-तिचरिमफालीण महियत्तुवलंभादो | संपहि रूवूणधापत्र त्तभागहारेणोवदिचडिदद्वाणं दुगुणमेत्तं रूऊणधापवत्तभागहारवग्गेणोवष्टिदचडिदद्वाणमेत्तं च एगफालिक्खवगमोदारिय पुणो उकस्सजो गहाणादो तिष्णिफालिक्खवगो रूवूणधापवत्तभागहारमेत्तजोगडाणाणि दोफालिक्खवगो वि दुरूऊणधापवत्तभागहारमे तजोगट्ठाणाणि ओदारेदव्वो । एवमोदारिदे चरिमफालिहा होदि, अकमेण दुगुणिदअधापवत्तभागहारमेत्तचरिमका लिहागाणं पडिणियत्तत्तादो । पुणो तिण्णिफा लिक्खवगे पक्खेउत्तरजोगं णोदे तिचरिमफालि विसेसद्वाणं होदि, अकमेणेगचरिम- दुचरिम- तिचरिमफालीणं वडिदत्तादो । संपहि इममेत्थेव विय ३६० 1 क्योंकि आगे गये हुए अध्वानमात्र द्विचरम फालियोंकी अधिकता उपलब्ध होती है, इसलिए एक कम अधःप्रवृत्तभागहारसे भाजित आगे गये हुए अध्वानमात्र एक फालि क्षपकको उतार कर तीन फाक्षिक प्रक्षेप अधिक त्रिभाग कम उत्कृष्ट योगको प्राप्त होने पर त्रिचरम फालिविशेष स्थान पुनरुक्त होता है, क्यों कि पहले प्राप्त कराया गया स्थान ही उत्पन्न हुआ है । अब इसे यहीं पर स्थापित करके पुनः एक फालिक्षपकको उत्कृष्ट योगके प्राप्त होने तक एक एक प्रक्षेप अधिक क्रमसे ले जाना चाहिए। ९४०७. अब तीन फालिक्षपकको त्रिभाग कम उत्कृष्ट योगको प्राप्त करा कर चरम फालिस्थानके समान करके पुनः यहाँ पर क्रियाविशेषको बतलाते हैं । यथा - सवेद भागके चरम समय में और द्विचरम समयमें तथा उत्कृष्ट योगसे त्रिचरम समय में त्रिभागकम उत्कृष्ट योगसे बन्धकर अधिकृत त्रिचरम समय में अवस्थित क्षपकस्थान पहलेके स्थानसे विशेष अधिक है, क्योंकि आगे गये हुए अध्वानमात्र द्विचरम और त्रिचरम फालियाँ अधिक पाई जाती हैं । अब एक कम अधःप्रवृत्तभागहार से भाजित आगे गये हुए अध्वानको दूनामात्र और एक कम अधःप्रवृत्तभागहारके वर्गसे भाजित आगे गये हुए अध्वानमात्र एग फालिक्षपकको उतारकर पुनः उत्कृष्ट योगस्थानसे तीन फालिक्षपकको एक कम अधःप्रवृत्तभागद्दारमात्र योगस्थान दो फालिक्षपकको भी दो रूप कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र योगस्थान उतारना चाहिए । इस प्रकार उतारने पर चरम फालिस्थान होता है, क्योंकि अक्रमसे द्विगुणित अधःप्रवृत्तभागहारमात्र चरम फालिस्थानोंकी निवृत्ति हुई है । पुनः तीन फालिक्षपकके एक प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त कराने पर त्रिचरम फालि विशेष स्थान होता है, क्योंकि अक्रम से एक चरम, द्विचरम और त्रिचरम फालियोंको वृद्धि हुई है । अब इसे यहीं पर स्थापित कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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