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________________ ३२८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ एदाणि पुध ठवेदव्वाणि । पुणो चरिमसमयसवेदस्स चरिमफालियाए घोलमाणजहण्णजोगप्पहुडि उवरिमजोगट्ठाणमेत्ताणि चेव पदेससंतकम्मट्ठाणाणि लद्धाणि ण हेहिमाणि । पुणो तिस्से वेवप्पणो समयूणावलियमेत्तदुचरिमादिफालियासु तत्थ एगदचरिमफालियाए लढाणमसंखेज्जाणि खंडाणि कादूण तत्थ एगखंडे घोलमाणजहण्णजोगस्स हेढा आणेदेण संघिदे तीए वि उकस्सजोगट्टाणद्धाणमेत्ताणि पदेससंतकम्मटाणाणि लद्धाणि त्ति कादूण एगम्मि सयलजोगट्टाणद्धाणे दुसमयूणदोआवलियाहि विसेसाहियाहि गुणिदे सव्वपदेससंतकम्महाणाणि होति । किम दुसमयूणदोआवलियाओ विसेसाहियाओ कदाओ ? ण, दुचरिमादिफालियाहि लहाणेसु मेलाविदेसु मव्वजोगहाणाणमसंखेजदिमागस्सुवलंभादो। तं जहा १ इमं संदिहिं हविय एत्थ दुसमयूणदोआवलियमेत्तसव्वचरिमफालीओ ११. सव्वसुण्णाणि च अवणेदूण सेसखेत्तं पदरावलियपमाणेण कस्सामो। तं । जहा-दुसमयणावलियसंकलणखेत्ते सेसखेत्तादो अवणिय पध ६११६ हविदे उव्वरिदखेत्तं समयूणावलियवग्गमेत्तं ति तस्स पुध १ १ १ १ १ १ . विणासोकायव्यो-२११११११ संपहि सेसखेत्तस्स २१११ समकरणे कदे | १ १ १ १ १ १ १ | समयणलिया. ० ० १ १ १ १११११ १११११ यामं दुस | मयूणावलियाए ०००० ११ १ १ १ ११ १ १११११११ विक्खंभखेत्तं ००००००११११११११ हादण। १ १ १ १ १ १ १ चेदि । तस्स rrrrrrro००००० |१११११११। " orror wwwwww ००००१ ११११ १११ शत. १११११११ । सवेदी जीवको अन्तिम फालिमें घोलमान जघन्य योगसे लेकर उपरिम योगस्थानमात्र ही प्रदेशसत्कर्मस्थान लब्ध आते हैं, अधस्तन नहीं । पुनः उसकी ही जो अपनी एक समय कम आवलिमात्र द्विचरम आदि फालियाँ हैं उनमेंसे एक द्विचरम फालिके प्राप्त हुए स्थानके असंख्यात खण्ड करके उनमेंसे एक खण्डको घोलमान जघन्य योगके नीचे लाकर मिलाने पर उसके भी उत्कृष्ट योगस्थानअध्वानमात्र प्रदेशसत्कर्मस्थान लब्ध आते हैं ऐसा समझकर एक पूरे योगस्थान अध्वानको विशेष अधिक दो समय कम दो आवलियोंसे गुणित करने पर सब प्रदेशसत्कर्मस्थान होते हैं। शंका-दो समय कम दो आवलियाँ विशेष अधिक क्यों की हैं ? समाधान नहीं, क्योंकि द्विचरम आदि फालिरूपसे प्राप्त हुए स्थानोंके मिलाने पर सब योगस्थानोंका असंख्यातवाँ भाग उपलब्ध होता है । यथा-(यहां पर मूलमें दी गई संदृष्टि देखिए )। इस संदृष्टिको स्थापित करके यहाँ पर दो समय कम दो आवलिमात्र सब चरम फालियोंको और सब शून्योंको अलग करके शेष क्षेत्रको प्रतरावलिके प्रमाणरूपसे करते हैं। यथा-दो समय कम आवलिप्रमाण संकलन क्षेत्रको शेष क्षेत्रमेंसे निकालकर पृथक स्थापित करने पर बाकी बचा क्षेत्र एक समयकम आवलिके वर्गप्रमाण होता है, इसलिए उसका अलगसे विन्यास करना चाहिए ( मूलमें दी गई संदृष्टि यहां पर लिजिए )। अब शेष क्षेत्रका समीकरण करने पर एक समय कम आवलिप्रमाण आयामको लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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