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________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ३२९ पमाणमेदं- १ १ १ | पुणो एत्थ समयूणावलियायामाओ दोफालीओ घेण पुव्विल्लखेत्तस्स १११ | दोसु वि फासेसु फालिय संघिदासु दोसु फासेसु आवलियमेत्ता-११ १ यामं सेसदोफासेसु समयणावलियमेतं होण चेट्ठदि, १ १ १ T एगफालियाए १११ वग्गमेत्तेणूणत्तादो। तं चेदं - पुणो गहिद- १ १ १ | सेसं समयूणावलियायामं दुरूवूणमेत्तविक्खंभं होदूण दुसमपूणावलियाए अर्द्ध चेदि । तस्स पमाणमेदंविक्खंभेण गुणिदे जं पुणखेत्तम्मि | पुणो एदस्स आयामे फलं तत्थ एगरूवं - १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ 1 १ संपहि एदाओ फालियाओ जदि वि सरिसाओ न होंति तो वि बुड्डीए दुचरिमफालिसमाणाओ त्ति घेत्तव्वं । पुणो एदाओ चरिमफालिपमाणेण कस्सामो । तं जहा - रूवूणअधापवत्तमेतदुचरिमफालियाणं जदि एगचरिमफाली लग्भदि तो उक्कस्सजोगहाणपक्खेव भागहारमेतदुचरिमफालीणं केत्तियाओ चरिमफालीओ लभामो ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए रूवूणअधापवत्तभागहारेण उकस्सजोगट्ठाण १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ Jain Education International १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १० १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ ??? १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ विदे संपुण्णा पदरावलिया होदि । सा एसा १ १ १ १ १ १ १ हुए और दो समय कम आवलिके अर्धभागप्रमाण विष्कम्भको लिए हुए होकर क्षेत्र स्थित होता है । उसका प्रमाण यह है -- ( संदृष्टि मूल में देखिए । ) पुनः यहां पर एक समय कम आवलिप्रमाण आयामवाली दो फालियोंको ग्रहण करके पहलेके क्षेत्रके दोनों ही पार्श्वोमें फाड़कर मिला देने पर दोनों ही पावों में आवलिप्रमाण आयामवाला तथा शेष दो पावों में एक समयकम आवलिप्रमाण क्षेत्र स्थित होता है, क्योंकि एक फालिके वर्गसे वह न्यून है । वह क्षेत्र यह है - ( संदृष्टि मूलमें देखिए । ) पुनः ग्रहण किये गयेसे शेष बचा क्षेत्र एक समय कम आवलिप्रमाण लम्बा तथा दो समय कम आवलिके अर्धभाग में से दो रूप कम करने पर जो शेष बचे उतना विष्कम्भवाला होकर स्थित होता है । उसका प्रमाण यह है( संदृष्टि मूल में देखिए ) । पुनः इसके आयामको विष्कम्भसे गुणित करने पर जो फल प्राप्त हो उसमें से एक रूपको ग्रहणकर पूर्वोक्त न्यून क्षेत्र में स्थापित करने पर सम्पूर्ण प्रतराव होती है । वह यह है -- ( संदृष्टि मूलमें देखिये ) | अब ये फालियाँ यद्यपि समान नहीं होती हैं तो भी बुद्धिसे द्विचरम फालिके समान हैं ऐसा प्रहण करना चाहिये । पुनः इनको अन्तिम फालिके प्रमाणरूपसे करते हैं। यथा-एक कम अधःप्रवृत्तप्रमाण द्विचरम फालियोंकी यदि एक चरम फालि प्राप्त होती है तो उत्कृष्ट योगस्थानके प्रक्षेप भागहारप्रमाण द्विचरम फालियोंकी कितनी चरम फालियाँ प्राप्त होती हैं, इस प्रकार फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर एक कम अधस्तन भागद्दारका उत्कृष्ट योगस्थानके प्रक्षेप भागद्दार में भाग देने पर वहाँ एक खण्डप्रमाण ४२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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