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________________ ३२६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ उक्कस्सजोगट्ठाणादो दुचरिमसमयसवेदो ओदारेदव्यो । एवमोदारिदे तिण्ह फालीणमुक्कस्सदव्वेण छप्फालिदव्वं सरिसं होदि, तिचरिमसमए तप्पाओग्गजहण्णजोगेण सवेददचरिमसमए उक्कस्सजोगहाणादो पुबिल्लं तं लद्धमेत्तमोदारिदूण द्विदजोगेण चरिमसमए उक्कस्सजोगेण बंधिय अधियारतिचरिमसमयम्मि अवहिदत्तादो । 5 ३६६. संपहि तपाओग्गजहण्णजोगेण परिणदतिचरिमसमयसवेदो पक्खेवत्तरकमेण वड्डावयव्यो । एवं वड्डाविजमाणे केत्तिएसु जोगहाणेसु चडिदेसु सव्वमंतरं पविसदि त्ति चे ? तस्सेवप्पणो हेहिमअद्धाणमत्तेसु पुणो उकस्सजोगहाणमद्धाणं रूवूणअधापवत्तेण खंडिदूण तत्थ एगखंडं दुगुणं करिय विसेसाहिए च कदे तत्तियमेत्तेसु च जोगट्टाणेसु चडिदेसु सव्वमंतरं। पक्खेवत्तरकमेण पविसदि । संपहि उवरिमअसंखेजा भागा पक्खेवुत्तरकमेण वड्दावेदव्वा जावुकस्सजोगहाणं पत्तं ति । संपहि एवं पेक्खिदूण सवेदतिचरिमसमए दुचरिमसमयसवेदेण परिणदजोगट्ठाणेण परिणमिय' दचरि समए चरिमसमए च उकस्सजोगहाणेण परिणमिय पुरिसवेदं बंधिय अधियारतिचरिमसमयहिदस्स छप्फालिदव्वं विसेसाहियं होदि, चढिदद्धाणमेतदुचरिमाहि अहियत्तुवलंभादो । तीन फालियोंके उत्कृष्ट द्रव्यके साथ छह फालियोंका द्रव्य समान होता है, क्योंकि त्रिचरम समयमें तत्प्रायोग्य जघन्य योगका अवलम्बन लेकर सवेद भागके द्विचरम समयमें उत्कृष्ट योगस्थानसे पहलेका जो लब्ध है तत्प्रमाण उतर कर स्थित हुए योगके साथ अन्तिम समयमें उत्कृष्ट योगसे बन्ध करके अधिकृत त्रिचरम समयमें अवस्थित है। ६३६६. अब तत्प्रायोग्य जघन्य योगसे परिणत हुए त्रिचरम समयवर्ती सवेदी जीवको एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे बढ़ाना चाहिए। शंका-इस प्रकार बढ़ाने पर कितने योगस्थानोंके चढ़नेपर सब अन्तर प्रवेश करता है ? समाधान-उसीके अपने अधस्तन अध्वानमात्र योगस्थानोंके और उत्कृष्ट योगस्थान अध्वानको एक कम अधःप्रवृत्तसे भाजित करके वहाँ जो एक भाग लब्ध आवे उसे दूना करके विशेष अधिक करने पर जितने योगस्थान हों उतने योगस्थानोंके चढ़ने पर सब अन्तर एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे प्रवेश करता है। अब उपरिम असंख्यात बहुभागको एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे उत्कृष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिए। अब इसको देखकर सवेद भागके त्रिचरम समयमें द्विचरम समयवर्ती सवेदी जीवके द्वारा परिणत हुए योगस्थानरूपसे परिणमा कर तथा द्विचरम समयमें । समयमें उत्कृष्ट योगस्थानरूपसे परिणमा कर परुषवेदका बन्ध कर अधिकृत त्रिचरम समयमें स्थित हुए जीवके छह फालियोंका द्रव्य विशेष अधिक होता है, क्योंकि जितना अध्वान ऊपर गये हैं उतने द्विचरमोंसे वह अधिक पाया जाता है। १. ता०प्रतौ 'चढिदेसु लद्धमंतर' इति पाठः । २. आ.प्रतौ 'परिणदजोगहाणं परिणमिय' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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