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________________ ३२४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [ पदेसविहत्ती ५ उक्कस्सजोगेण परिणमिय पुरिसवेदे बद्ध पुग्विल्लतिण्णिफालिदव्वादो एदासिं तिण्हं फालोणं दव्वं विसेसाहियं होदि, एगफालिसामिणो हिदजोगट्ठाणादो उवरिमजोगहाणमेत्तदुचरिमाणमब्भहियत्तवलंभादो। ३६४. संपहि इमाओ अहियदचरिमफालोओ चरिमफालिपमाणेण कस्सामो । तं जहा–रूवूणअधापवत्तमेत्तदुचरिमफालीणं जदि एगा चरिमफाली लब्भदि तो एगदोफालीणमंतरालट्ठिदनोगहाणमेत्तदचरिमफालीसु केत्तियाओ लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए जं लद्धं तत्तियमेत्ताओ चरिमफालोओ लभंति । एवं लभंति त्ति कादूण एदासिमवणयणट्ठमेत्तियमद्धाणमेगफालिसामिओ पुणरवि ओदारेदव्वो। संपहि एगफालिखवगे पक्खेवुत्तरकमेण वढाविजमाणे केत्तिए अद्धाणे उपरि चडिदे दुचरिमसमयवेदस्स चरिमफाली सयलजोगहाणद्धाणं लहदि त्ति भणिदे तप्पाओग्गजहण्णजोगहेटिममद्धाणमेत्तजोगहाणेसु उवरि चडिदेसु दुचरिमसमयसवेदस्स चरिमफाली उकस्सजोगहाणम त्तद्धाणं संपुण्णं लहइ । एवम स्थ दोजोगट्ठाणद्धाणमेत्तपदेससंतकम्मढाणाणि लद्धाणि । संपहि उवरिमसेसद्धाणम्मि वहाविजमाणे चरिमसमयसव दस्स दुचरिमफाली वि उकस्सा होदि, द्वारा द्विचरम समयमें दो फालिरूप क्षपक योगरूपसे परिणमा कर तथा अन्तिम समयमें उत्कृष्ट योगरूपसे परिणमा कर पुरुषवेदका बन्ध करने पर पहलेकी तीन फालियोंके द्रव्यसे इन तीन फालियोंका द्रव्य विशेष अधिक होता है, क्योंकि एक फालिके स्वामीके स्थित हुए योगस्थानसे उपरिम योगस्थानमात्र द्विचरमोंका अधिकपना उपलब्ध होता है। $३६४. अब इन अधिक द्विचरम फालियोंको अन्तिम फालिके प्रमाणरूपसे करते हैं। यथा--एक कम अधःप्रवृत्तमात्र द्विचरम फालियोंकी यदि एक चरम फालि प्राप्त होती है तो एक दो फालियोंके अन्तरालमें स्थित योगस्थानमात्र द्विचरम फालियोंमें कितना प्राप्त होगा, इस प्रकार फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतनी अन्तिम फालियाँ लब्ध आती हैं। इतनी लब्ध आती हैं ऐसा समझकर इनको निकालने के लिए इतने अध्वान तक एक फालिके स्वामीको पुनरपि उतारना चाहिए । अब एक फालि क्षपकके एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे बढ़ाने पर कितना अध्वान ऊपर चढ़ने पर द्विचरम समयवर्ती सवेदी जीवकी चरम फालि सकल योगस्थान अध्वानको प्राप्त करती है इस प्रकार पूछने पर उत्तर देते हैं कि तत्प्रायोग्य जघन्य योगके अधस्तन अध्वानमात्र योगस्थानोंके ऊपर चढ़ने पर द्विचरम समयवर्ती सवेदी जीवकी अन्तिम फालि सम्पूर्ण उत्कृष्ट योगस्थानमात्र अध्वानको प्राप्त करती है। इस प्रकार यहाँ पर दो योगस्थान अध्वानमात्र प्रदेशसत्कर्मस्थान प्राप्त हुए । अब उपरिम शेष अध्वानके बढ़ाने पर अन्तिम समयवर्ती सवेदी जीवकी द्विचरम फालि भी उत्कृष्ट होती है, क्योंकि एक कम अधःप्रवृत्तभागहारका योगस्थान अध्वानमें भाग देने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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