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________________ गा० २२] उत्तरपडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ३२३ विसेसाहियपक्खेवभागहारमेत्तचरिमाणं केत्तियाओ चरिम-दुचरिमफालीओ लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए एत्थतणपक्खेवभागहारमधापवत्तेण खंडेदूण तत्थ लद्धेगखंडे रूवणअधापवत्तभागहारेण गुणिदे तत्थ जत्तियाणि रूवाणि तत्तियमेत्ताओ लब्भंति । पुणो एत्तियमेत्तजोगट्ठाणाणि पुणरवि दोफालिसामीओ ओदारेदव्वाओ एवमेदेहि जोगहाणेहि परिणमिय बद्धपुरिसवेदतिण्णिफालिदव्वमुक्कस्सजोगेण बद्धपुरिसवेदचरिमफालिदव्वेण सरिसं होदि, विणटुंतरत्तादो । पुणो दुचरिमसमयसवेदे पक्खेवुत्तरजोगेण बंधाविदे एगफालिसामिणो पुव्वुप्पण्णुक्कस्सपदेससंतकम्मट्ठाणादो उवरि अण्णमपुणरुत्तट्ठाणमुप्पजदि । एवं दुचरिमसमयसवेदे पक्खेवुत्तरकमेण वड्डाविजमाणे केत्तियमेत्तजोगहाणेसु उवरि चडिदेसु सव्वमंतरं पक्खेवुत्तरकमेण पविसदि त्ति भणिदे तप्पाओग्गजहण्णजोगिणो विसेसाहियहेहिमअद्धाणमेतं पुणो उक्कस्सजोगहाणद्धाणं रूवूणअधापवत्तभागहारेण खंडिय तत्थ एगखंडमेत्तं च उवरि चडिदे पक्खेवुत्तरकमेण सव्वमंतरं पविसदि । संपहि पणरवि दुचरिमसमयसवेदो पक्खेवुत्तरकमेण वड्डाव दव्वो जावुकस्सजोगट्ठाणं पत्तो त्ति । संपहि अण्णेगेण दुचरिमसमए दोफालिखवगजोगेहि परिणामिय चरिमसमए वाले जीवके अधस्तन अध्वानसे विशेष अधिक प्रक्षेप भागहारप्रमाण चरमोंकी कितनी चरम और द्विचरम फालियाँ प्राप्त होंगी, इस प्रकार फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर यहाँके प्रक्षेपभागहारको अधःप्रवृत्तसे भाजित करके वहाँ प्राप्त हुए एक खण्डको एक कम अधःप्रवृत्तभागहारसे गुणित करने पर वहाँ जितने रूप हैं उतना प्राप्त होता है। पुमः इतने मात्र योगस्थानोंको फिर भी दो फालियोंके स्वामियोंके आश्रयसे उतारना चाहिए । इस प्रकार इन योगस्थानरूपसे परिणमाकर बद्ध पुरुषवेदकी तीन फालियोंका द्रव्य उत्कृष्ट योगसे बद्ध पुरुषवेदकी अन्तिम फालिके द्रव्यके समान होता है, क्योंकि अन्तरका विनाश हो गया है। पुनः द्विचरम समयवर्ती सवेदी जीवके प्रक्षेप अधिक योगके द्वारा बन्ध कराने पर एक फालिके स्वामीके पूर्वोत्पन्न उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मस्थानसे ऊपर अन्य अपुनरुक्त स्थान उत्पन्न होता है। इसी प्रकार द्विचरम समयवर्ती सवेदी जीवके एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे वृद्धि कराने पर कितने योगस्थान ऊपर चढ़ने पर सब अन्तर एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे प्रवेश करते हैं ऐसा पूछने पर उत्तर देते हैं कि तत्प्रायोग्य जघन्य योगवाले जीवके विशेष अधिक अधस्तन अध्वानमात्रको पुनः उत्कृष्ट योगस्थान अध्वानको एक कम अधःप्रवृत्तभागहारसे भाजित करके वहाँ एक भागमात्र ऊपर चढ़ने पर एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे सब अन्तर प्रवेश करता है। अब फिर भी द्विचरम समयवर्ती सवेदी जीवको एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे उत्कृष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिए। अब अन्य एक जीवके १.ता०प्रतौ 'भोदारेवो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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