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________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ___६३३८. संपहि विदियफालिंदव्वे पढमफालिदव्वम्मि सोहिदे सुद्धसेसं पढमफालिपक्खेवविसेसो णाम । संपहि एदे विसेसा पुव्विल्लकिरियाए समुप्पण्णा उवरिमविरलणाए सेडीए असंखे०भागमेत्ता अत्थि । संपहि एदे अवणि दविसेसे पढमफालिपमाणेण कस्सामो। तं जहा–अधापबत्तभागहारमेत्तपढमफालिविसेसाणं जदि एगा पढमफाली लब्भदि तो सेढीए असंखे०भागमेत्तविसेसेसु केत्तियाओ पढमफालीओ लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए पढमफालीओ लभंति १०।। $३३९. संपहि सयलपक्खेवपमाणेण कस्सामो । तं जहा-अधापवत्तभागहारवग्गमेत्तविसेसाणं जदि एगो सयलपक्खेवो लब्भदि तो सेढीए असंखे०भागमेत्तविसेसाणं केत्तियसयलपक्खेवे लभामो त्ति अधापवत्तभागहारवग्गेण सेढीए असंखे०भागे खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्ता सयलपक्खेवा लब्भंति ११ । ६३४०. संपहि ते विसेसे विदियफालिपमाणेण कस्सामो । तं जहारूवणअधापवत्तभागहारमेत्तविसेसेहितो जदि एगा विदियफाली लब्भदि तो सेढीए उदाहरण-अधःप्रवृत्तभागहार ९ का वर्ग ८१; ४२५१५२८४८१-३४४३७३७६८ = ८४४३०४६७२१; १८४४३०४६७२१ = २६ सकल प्रक्षेप । ६३३८. अब दूसरी फालिके द्रव्यको पहली फालिके द्रव्यमेंसे घटा देने पर जो शेष रहे वह प्रथम फालिसम्बन्धी प्रक्षेपविशेष है। अब ये विशेष पूर्वोक्त विधिसे उत्पन्न करने पर उपरिम विरलनमें जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं। अब इन घटाये हुए विशेषोंको प्रथम फालिके प्रमाणरूपसे करते हैं। यथा-अधःप्रवृत्त भागहारप्रमाण विशेषोंकी यदि एक प्रथम फालि प्राप्त होती है तो जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण विशेषोंकी प्रथम फालियाँ प्राप्त होंगी इस प्रकार त्रैराशिक करके फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतनी प्रथम फालियाँ प्राप्त होती हैं १० । उदाहरण-प्रथम फालि ४७८२९६९; द्वितीय फालि ४२५१५२८; विशेष ४७८२९६९४२५१५२८ =५३१४४१; यदि ९४५३१४४१ =४७८२९६९ (प्रथम फालि ) तो ३६४५३१४४१ =३६ प्रथमफालि अर्थात् ४ प्रथमफालि प्राप्त होंगी। ६३३९. अब दूसरी फालिके द्रव्यको पहली फालिके द्रव्यमेंसे घटा देने पर जो शेष रहे उस विशेषको सकल प्रक्षेपके प्रमाणरूपसे करते हैं । यथा-अधःप्रवृत्तभागहारके वर्गप्रमाण विशेषोंका यदि एक सकल प्रक्षेप प्राप्त होता है तो जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण विशेषांके कितने सकल प्रक्षेप प्राप्त होंगे इस प्रकार अधःप्रवृत्तभागहारके वर्गसे जगणिके असंख्यातवें भागको खंडित करने पर एक भागप्रमाण सकल प्रक्षेप प्राप्त होते हैं ११ । उदाहरण--अधःप्रवृत्तभागहार ९ का वर्ग ८१, विशेष ५३१४४१; यदि ८१४५३१४४१ का एक सकल प्रक्ष प४३०४६७२१ होता है तो जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग ३६ के कितने सकलपक्षप होंगे ? ३६ सकलप्रक्षेप होंगे। ६३४०. अब उन्हीं विशेषोंको द्वितीय फालिके प्रमाणरूपसे करते हैं । यथा-एक कम अधःप्रवृत्त भागहारप्रमाण विशेषोंकी यदि एक द्वितीय फालि होती है तो जगणिके असंख्यातवें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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