SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए पढमफालिपमाणमागच्छदि ७ । ६ ३३६. संपहि विदियफालिदव्वं सेसपमाणेण कस्सामो। तं जहा-रूवूणअधापवत्तमेतविदियफालीणं जदि एगं सेसं पमाणं लब्भदि तो सेढीए असंखे०भागमेत्तविदियफालीसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए सेसपमाणमागच्छदि ८। ६ ३३७. संपहि विदियफालिं सगलपक्खेवपमाणेण कस्सामो । तं जहाअधापवत्तभागहारवग्गमेत्तविदियफालीणं जदि रूवूणअधापवत्तभागहारमेत्तसयलपक्खेवा लब्भंति तो सेढीए असंखे०भागमेत्तविदियफालीणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए अधापवत्तभागहारवग्गेण सेढीए असंखे०भागं खंडेदूण तत्थ लद्धगखंडे रूवूणअधापवत्तभागहारेण गुणिदे जत्तियाणि रूवाणि तत्तियमेत्ता सयलपक्खेवा लब्भंति ९। प्रकार त्रैराशिक करके फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर प्रथम फालियोंका प्रमाण प्राप्त होता है । उदाहरण-सकल प्रक्षेप ४३०४६७२१-४७८२९६९, प्रथम फालि ३८२६३७५२, अधःप्रवृत्तभागहार ९, दूसरी फालि ४२५१५२८, जगणिका असंख्यातवाँ भाग ३६ । ४२५१५२८, ४२५१५२८, ४२५१५२८, ४२५१५२८, ४२५१५२८, ४२५१५२८, ४२५१५२८, ४२५१५२८, ४२५१५२८ अब जगणिके असंख्यातवें भाग प्रमाण ३६ बार सब शेष स्थापित करो और प्रत्येक उसमेंसे दूसरी फालि ४२५१५२८ को घटाकर अलग रखो। अब इन सब दूसरी फालियोंको राशिक विधिसे प्रथम फालिरूपसे किया जाता है तो ३६ दूसरी फालियोंकी ३२ प्रथम फालियाँ बनती हैं। ६३३६. अब दूसरी फालिके द्रव्यको शेषके प्रमाणसे करते हैं । यथा-एक कम अधःप्रवृत्तप्रमाण द्वितीय फालियोंका यदि एक शेष प्रमाण प्राप्त होता है तो जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण द्वितीय फालियोंमें कितने शेष प्राप्त होंगे इस प्रकार त्रैराशिक करके फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर शेषका प्रमाण आता है ८। उदाहरण-एक कम अधःप्रवृत्त प्रमाण ८, द्वितीय फालि ४२५१५२८, शेषका प्रमाण ३४०१२२३४, जगणिके असंख्यातवें भाग प्रमाण ३६ यदि ८४४२५१४२८३४०१२३३४, ३६x४२५१५२८ बराबर होंगे ६x६४२५१५२८, अर्थात ४१ शेष । ६३३७. अब दसरी फालिको सकल प्रक्षेपके प्रमाणरूपसे करते हैं। यथा-अध:प्रवृत्त भागहारके वर्गप्रमाण द्वितीय फालियोंके यदि एक कम अधःप्रवृत्त भागहारप्रमाण सकल प्रक्षेप प्राप्त होते हैं तो जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण द्वितीय फालियोंके कितने सकल प्रक्षेप प्राप्त होंगे इस प्रकार त्रैराशिक करके फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर, अधःप्रवृत्तभागहारके वर्गद्वारा जगश्रेणिके असंख्यातवें भागको भाजित करके वहाँ जो एक भाग प्राप्त हो उसे एक कम अधःप्रवृत्तभागहारसे गुणित करने पर, जितनी संख्या आवे उतने सकल प्रक्षेप प्राप्त होते हैं ९। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy