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________________ २७६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [पदेसविहत्ती ५ समऊणतिपलिदोवमिएसुववन्जिय सम्मत्तं घेत्तूण दिवड्डपलिदोवमाउअसोहम्मदेवेसुप्पज्जिय पच्छा मिच्छत्तं गंतूण पुव्वकोडीए उववजिय खवणाए अब्भुटिय णqसयवेदस्स एगणिसेगमेगसमयकालं धरेदूण डिदो पुविल्लेण सरिसो। २८१. संपहि इमो परमाणुत्तरकमेण एगगोवुच्छविसेसं विज्झादेण गददव्वेणब्भहियं वड्ढावेदव्यो । पुणो एदेण अण्णेगो खविदकम्मंसियलक्खणेण दुसमयणतिपलिदोवमिएसुववन्जिय सम्मत्तं घेत्तण दिवड्डपलिदोवमाउअसोहम्मदेवेसुववन्जिय मिच्छत्तं गंतूण पुव्वकोडीए उववज्जिय खवणाए अन्भुडिय णqसयवेदस्स एगणिसेगमेगसमयकालं धरिय हिदो सरिसो। एवं तिण्णि पलिदोवमाणि हेट्ठा ओदारदव्याणि जाव समयाहियपुव्वकोडी सेसा त्ति । संपहि एत्तो हे ओदारेढुं ण सक्कदे समयाहियपुव्वकोडोदो हेहा असंखेजवस्साउआणं सव्वजहण्णाउअभावादो।। ___२८२. संपहि एदेण अण्णेगो खविदकम्मंसिओ सण्णिपंचिंदिएसुप्पण्णो संतो पुणो समयाहियपव्वकोडीए समहियदिवड्डपलिदोवमहिदिएसु देवेसु उववज्जिय अंतोमुहुत्तं गमिय सम्मत्तं पडिवञ्जिय पणो देवाउग्रं सचमणुपालिय मिच्छत्तं गंतूण पव्वकोडीए उववजिय सम्मत्तं संजमं च घेत्तूण सव्व पव्यकोडिं संजमगुणसेढिणिजरं आकर एक समयकम तीन पल्यकी आयुवालोंमें उत्पन्न हुआ। पश्चात् सम्यक्त्वको ग्रहणकर डेढ़ पल्यकी आयुवाले सौधर्म स्वर्गके देवोंमें उत्पन्न हुआ। पश्चात् मिथ्यात्वको प्राप्तकर पूर्व कोटिकी आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। फिर क्षपणाके लिये उद्यत हो नपुसकवेदके एक समयकी स्थितिवाले एक निषेकको धारणकर स्थित हुआ जीव पूर्वोक्त जीवके समान है। २८१. अब इस जीवके द्रव्यके ऊपर उत्तरोत्तर एक-एक परमाणु अधिकके क्रमसे एक गोपुच्छविशेषको और विध्यातभागहारके द्वारा पर प्रकृतिको प्राप्त हुए द्रव्यको बढ़ाना चाहिए। इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए इस जीवके समान एक अन्य जीव है जो क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर दो समय कम तीन पल्यकी आयुवाले जीवोंमें उत्पन्न हुआ । फिर सम्यक्त्वको ग्रहण कर डेढ़ पल्यकी आयुवाले सौधर्म स्वर्गके देवोंमें उत्पन्न हुआ। फिर मिथ्यात्वमें जाकर पूर्वकोटिके आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। फिर क्षपणाके लिये उद्यत हो नपुंसकवेदकी दो समयकी स्थितिवाले एक निषेकको धारण कर स्थित है। इस प्रकार एक समय अधिक एक पूर्वकोटि काल शेष रहने तक तीन पल्य कालको उतारते जाना चाहिये । अब इससे नीचे उतारना शक्य नहीं हैं, क्योंकि असंख्यात वर्षकी आयुवालोंकी एक समय अधिक एक पूर्वकोटि सबसे जघन्य आयु है। उनकी इससे और नीचे आयु नहीं पाई जाती। ६२८२. अब इस जीवके समान एक अन्य जीव है जो क्षपितकर्माश जीव संज्ञी पंचेन्द्रियों में उत्पन्न हो, फिर एक समय अधिक पूर्वकोटिकी आयुवालोंमें और एक समय अधिक डेढ़ पल्यकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न हो अनन्तर अन्तर्मुहूर्तके बाद सम्यक्त्वको प्राप्त हो फिर सब देवायुको पालकर मिथ्यात्वको प्राप्त हो पूर्वकोटि की आयुवालोंमें उत्पन्न हुआ। अनन्तर सम्यक्त्व जौर संयमको एक साथ ग्रहण कर पूरे पूर्वकोटि काल तक 1. आ०प्रतौ 'समयाहिय' इति पाठः । . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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