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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसबिहत्तीए सामित्तं २७७ करिय णवंसयवेदं खवेदूण हिदो सरिसो। ६ २८३. संपहि देवाउअं समयूणदुसमयूणादिकमेणोदारेदव्वं जाव खविदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण दसवस्ससहस्साउअदेवेसुववज्जिय सम्मत्तं घेत्तूण पुणो अंतोमुहुत्तावसेसे मिच्छत्तं गंतूण सयलपुव्वकोडीए उववन्जिय णवंसयवेदं खविय एगणिसेगमेगसमयकालं धरेदूण हिदो त्ति । संपहि देवाउअं समऊणादिकमेण ण ओहट्टदि दसवस्ससहस्सेहितो ऊणदेवाउआभावादो। तदो समयूण-दुसमयूणादिकमेण पुव्वकोडी ओहट्टावेदव्वा जाव समयणदसवस्ससहस्सूणपव्वकोडि' ति । ___२८४. पुणो एदेणवहिदतप्पाओग्गदव्वेण अण्णेगो खविदकम्मंसियलक्खणेण दसवस्ससहस्साउअदेवेसुववन्जिय अंतोमुहत्तं गमिय तत्थ सम्मत्तं घेत्तण पणो अंतोमुहुत्तावसेसे जीविदव्वए त्ति मिच्छत्तं गंतूण तदो दसवस्ससहस्साणि ऊणपुचकोडीए उववजिय णवंसयवदं खविय एगणिसेगमेगसमयकालं घरेण हिदो सरिसो। २८५. संपहि एदेण अण्णेगो खविदकम्मंसियलक्खणे देवे मोत्तण संपुण्णपुवकोडाउअमणुस्सेसु' उववण्णो तत्थ जोणिणिक्खमणजम्मण अंतोमुहुत्तब्भहियअहवस्साणि गमिय पुणो सम्मत्तं संजमं च जुगवं घेत्तूण संयमसम्बन्धी गुणश्रेणि निर्जरा करता हुआ नपुसकवेदका क्षय करके स्थित है। ६२८३. अब देवायुको उत्तरोत्तर एक समय कम और दो समय कम आदि क्रमसे क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर दस हजार वर्षकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न होकर, सम्यक्त्वको ग्रहण करके, फिर अन्तर्मुहूर्त आयु शेष रहने पर मिथ्यात्वमें जाकर, पूरी एक पूर्वकोटिकी आयु लेकर उत्पन्न हो नपुंसकवेदका क्षय करता हुआ एक समयकी स्थितिवाले नषेकको धारणकर स्थित हए जीवके प्राप्त होने तक उतारते जाना चाहिये । अब देवायुको एक समय कम अदि क्रमसे और घटाना शक्य नहीं है, क्योंकि देवायु दस हजार वर्षसे और कम नहीं होती । इसलिए पूर्वकोटिको एक समय कम दो समय कम आदि क्रमसे एक समय न्यून दस हजार वर्ष कम पूर्वकोटिके प्राप्त होनेतक घटाते जाना चाहिये। ६२८४. अब तद्योग्य अवस्थित द्रव्यको धारणकर स्थित हुए इस जीवके समान एक अन्य जीव है जो क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर, दस हजार वर्षकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न हो फिर अन्तमुहूर्तके बाद वहाँ सम्यक्त्वको ग्रहण कर अनन्तर जीवनमें अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर मिथ्यात्वको प्राप्त हो फिर दस हजार वर्ष कम एक पूर्वकोटिकी आयुवालोंमें उत्पन्न हो नपुंसकवेदका क्षय करता हुआ एक समयकी स्थितिवाले एक निषेकको धारण कर स्थित है। ६२८५. अब इसके समान एक अन्य जीव है जो क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर देवोंमें उत्पन्न हुए बिना परी एक पर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। वहाँ योनिसे निकलनेरूप जन्मसे लेकर अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष बिताकर फिर सम्यक्त्व ..'-दसवस्सूणपुवकोडि' इति पाठः । . २ श्रा०प्रती 'पुवकोडीए अाउअमणुस्सेसु' उति पाठः । ३. भा०प्रतौ 'जोणिणिकमणजम्मणेण' इति पाठः।.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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