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________________ २३६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ आणेदव्यो । एवमेदेण बीजपदेण समयूणावलियमेत्तकालपरिहाणिपरिवाडीओ चिंतियाणेदव्वाओ । णवरि सव्वपच्छिमवियप्पे विज्झादसंकमेणागच्छमाणदव्वेणूणसमऊणावलियमेत्तगोवुच्छविसेसा ऊणा कायव्वा । संपहि इमाओ समऊणावलियमेत्तुकस्सगोवुच्छाओ खविदकम्मंसियचरिमफालीए सह सरिसाओ ण होंति, असंखेजगुणत्तादो । तेण चरिमफालिदव्व सत्थाणे चेव चड्ढावेयव्व जाव समयूणावलियमेत्तकस्सगोवुझपमाणं पत्तं ति । पुणो एत्तो उनरि तिणि पुरिसे अस्सिदण पंचहि वड्डीहि वड्ढावेदव्य जाव चरिमफालिदव्वमुक्कस्स जादं ति । २३२ संपहि चरिमफालीए उक्कस्सदव्वमस्सिदण कालपरिहाणीए ठाणपरूवणाए कीरमाणाए सोव्वल्लणकालव छावद्विसागरोवमाणं जहां खविदकम्म सियम्मि परिहाणी कदा तहा एत्थ वि अव्वामोहेण कायव्वा । णवरि सम्मत्तकाले ऊणीकदे विज्झादसंकमणागददव्वणूणएगगोवुच्छादव्वेणूणमुक्कस्सदव्व करिय आणेदव्यो। उव्वेल्लणकाले ऊणीकदे उव्वल्लणसंकमण गच्छमाणदव्वेणब्भहियम गगोवुच्छदव्य तत्थूणं करिय णिकालेयव्यो । संपहि सत्तमपुढवीए मिच्छत्तुक्कस्सं करियागंतूण सम्मत्तं पडिवजिय पढमछावट्टिकालब्भंतरे गुणसंकमच्छेदणयमेत्ताओ उव्व लणणाणागुणहाणिसलागमत्ताओ च गुणहाणीओ उवरि चढिय दंसणमोहहै कि विध्यात संक्रमण द्वारा प्राप्त होनेवाले द्रव्यसे कम जो गोपुच्छविशेष उनसे वहां प्रकृत गोपुच्छाओंको कम करके लाना चाहिये। इस प्रकार इस बीज पद द्वारा एक समय कम आवलिप्रमाण कालकी हानिके क्रमको जानकर ले आना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि सबसे अन्तिम विकल्पमें विध्यात संक्रमण द्वारा आनेवाले द्रव्यसे कम एक समय कम आवलिप्रमाण गोपुच्छाविशेषोंको कम करना चाहिये। अब ये एक समयकम आवलिप्रमाण उत्कृष्ट गोपुच्छा क्षपितकाशकी अन्तिम फालिके समान नहीं होते हैं, क्योंकि ये असंख्यातगुणे हैं, अतः अन्तिम फालिके द्रव्यको एक समय कम आवलिप्रमाण उत्कृष्ट गोपुच्छाओंके प्रमाणके प्राप्त होने तक स्वस्थानमें ही बढ़ाना चाहिये। फिर इससे ऊपर तीन पुरुषोंका आश्रय लेकर पांच वृद्धियोंके द्वारा अन्तिम फालिका द्रव्य उत्कृष्ट होने तक बढ़ाते जाना चाहिये। ६२३२. अब अन्तिम फालिके उत्कृष्ट द्रव्यका आश्रय लेकर कालको हानिद्वारा स्थानोंका कथन करते हैं, अतः जिस प्रकार क्षपितकर्मा शके उद्वलनाकाल और दो छथासठ सागर कालकी हानिका कथन कर आये उसी प्रकार व्यामोहसे रहित होकर यहां भी करना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके कालके कम करने पर विध्यातसंक्रमणके द्वारा आये हुए द्रव्यसे कम जो एक गोपुच्छाका द्रव्य उससे कम उत्कृष्ट द्रव्य करके ले आना चाहिए। तथा उद्वलनाकालके कम करने पर उद्वेलना संक्रमणके द्वारा पर प्रकृतिको प्राप्त होनेवाले द्रव्यसे अधिक जो एक गीपुच्छाका द्रव्य उसे वहाँ कम करके उद्वेलना कालको घटाना चाहिये । अब सातवीं पृथिवीमें मिथ्यात्वको उत्कृष्ट करके आया फिर सम्यक्त्वको प्राप्त कर प्रथम छयासठ सागर कालके भीतर गुणसंक्रमणके अर्धच्छेदप्रमाण और उदलनाकी नाना गुणहानिशलाकाप्रमाण गुणहानियाँ ऊपर चढ़कर फिर दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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