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________________ गा. २२] उत्तरपयडिपदेसविहचीए सामित्तं २३५ गोवुच्छाओ धरिय द्विदो सरिसो । एवं किंचूणचदुपंचभागादिकमेण वड्डाविय ओदारेदव्वं जाव रूवूणुक्कस्ससंखेजमेत्तगोवुच्छाओ धरिय हिदो त्ति । एदेण अण्णेगो उक्कस्ससंखेञ्जण उक्कस्सदव्वं खंडिय तत्थ सादिरेगेगखंडेण ऊणुक्कस्सदव्वसंचयं करिय आगंतूणुक्कस्ससंखेजमेत्तगोवुच्छाओ धरिय द्विदो सरिसो। इमो परमाणुत्तरकमेण तीहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वो जावप्पणो उक्कस्सदव्वं पत्तो ति । २३१. संपहि एत्तो हेट्ठा ओदारिजमाणे दोहि वड्डीहि वड्डाविय ओदारेदव्वं जाव दुसमयूणावलियमेत्तगोवुच्छाओ धरिय हिदो त्ति । एदेण अवरेगो समयूणावलियाए उकस्सदव्वं खंडेदूण तत्थ सादिरेगेगखंडेशृणुकस्सदव्वसंचयं करियागतूण समयणावलियमेत्तगोवुच्छाओ धरिय द्विदो सरिसो। संपहि इमम्मि अप्पणो ऊणीकददव्वे वढाविदे समयूणावलियमेत्तगोवुच्छाओ उक्कस्साओ होति । एदासिं सव्वगोवुच्छाणं समऊणावलियमेत्ताणं कालपरिहाणीए कीरमाणाए जहा खविदकम्मंसियस्स कदा तहा पुध पुध कायव्वा । णवरि जेरइयचरिमसमए उक्कस्सं करेमाणो पयदेगेगगोवुच्छाए विज्झादसंकमेणागच्छमाणसव्वेणेगगोवुच्छविसेसेणूणमुक्कस्सदव्वं करिय समयूणवेछावट्ठीओ हिंडावेयव्यो । दोण्हं गोवच्छाणमोयारणकमो वि एसो चेव । णवरि विज्झादसंकमेणागच्छमाणदव्वेणूणगोवुच्छविसेसेहि पयदगोवुच्छाओ तत्थूणाओ करिय आया और चार गोपुच्छाओंको धारण करके स्थित है। इस प्रकार एक कम उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण गोपुच्छाओंको धारण करके स्थित हुए जीवके प्राप्त होने तक कुछ कम चार बटे पांच भाग आदिके क्रमसे बढ़ाना चाहिये। इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए इस जीवके समान एक अन्य जीव है जो उत्कृष्ट द्रव्यके उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण खण्ड करके उनमेंसे साधिक एक खण्डसे न्यून उत्कृष्ट द्रव्यका संचय करके आया और उत्कृष्ट संख्यातप्रमाण गोपुच्छाओंको धारण करके स्थित है। फिर इसे एक एक परमाणु अधिकके क्रमसे अपने उत्कृष्ट द्रव्यके प्राप्त होने तक बढ़ाते जाना चाहिये। $२३१. अब इससे नीचे उतारने पर दो समय कम एक आवलिप्रमाण गोपुच्छाओंको धारण कर स्थित हुए जीवके प्राप्त होने तक दो वृद्धियोंसे बढ़ाकर उतारना चाहिये । इस प्रकार प्राप्त हुए जीवके समान एक अन्य जीव है जो उत्कृष्ट द्रव्यके एक समय कम माण खण्ड करके उनमें से साधिक एक खण्डसे न्यून उत्कृष्ट द्रव्यका संचय करके आकर एक समय कम आवलिप्रमाण गोपुच्छाओंको धारण करके स्थित है। अब इसके अपने कम किये गये द्रव्यके बढ़ाने पर एक समय कम आवलिप्रमाण गोपुच्छाएं उत्कृष्ट होती हैं। एक समय कम आवलिप्रमाण इन सब गोपुच्छाओंकी कालकी हानि करने पर जिस प्रकार क्षपितकाशकी की गई उसी प्रकार अलग अलग गुणितकर्माशकी करनी चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि नारकीके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्त्वको करनेवालेको प्रकृत एक एक गोपुग्छामें विध्यातसंक्रमण द्वारा आनेवाले द्रव्यसे कम जो एक गोपुच्छा विशेष उससे न्यून द्रव्यको उत्कृष्ट करके एक समय कम दो छयासठ सागर काल तक घुमाना चाहिये। दो गोपुच्छाओंके उतारनेका क्रम भी यही है। किन्तु इतनी विशेषता 1. ता०प्रतौ 'दोणि णिसेगे' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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