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________________ २२४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ खविदकम्मंसियलक्खणेण देगेसुववन्जिय उवसमसम्मत्तं पडिवजिय पढमछावढि भमिय सम्मामिच्छत्तमग तूण मिच्छत्तं पडिवज्जिय दीहुव्वेल्लणकालेणुव्वेल्लिय दोणिसेगे तिसमयकालट्ठिदिगे धरेदूण द्विदो सरिसो।। $ २१९. एवमेदेण कमेण जाणिदण पढमछावही वि ओदारेदव्या जाव अंतोमुहुत्तूणा त्ति । तत्थ हविय अंतोमुहुत्तमत्तगोवुच्छविसेसा विज्झादसंकमणागददव्वेणणओकड्डकड्डणाए विणासिय दव्वमेत्तं च सादिरेयं वड्डानेयव्वं । एदेण खविदकम्मंसियलक्खणेणागतृण देवेसुववन्जिय उवसमसम्म घेत्तूण मिच्छत्तं पडिवजिय दीहुव्वेल्लणकालेणुव्वोल्लिय दोणिसेगे तिसमयकालढिदिगे धरेदूण हिदो सरिसो' । पुणो इमं दव्वं परमाणुत्तरादिकमेण वड्डाव दव्वं जाव एयसमयमुव्वल्लणभागहारणागददव्वण सहिदवेगोवु च्छविसेसा वड्डिदा त्ति । पुणो एदेण पुत्वविहाणेणागंतूण समयूणुकस्सुव्वल्लणकालेणुव्वल्लिददोणिसेगे तिसमयकालढिदिगे धरेदूण द्विदो सरिसो। एवं समयूणादिकमेण ओदारिय सव्वज हण्णुव्वल्लणकालचरिमसमए ठविय गुणिदकम्मंसिएण सह पुत्वं व संधाणं कायव्वं ।। ६२२०. संपहि एदेण कमेण तिण्णि णिसेगे चदुसमयकालढिदिगे आदि कादूण ओदारेदव्वं जाव समयूणावलियमेत्तगोवुच्छाओ ओदिण्णाओ ति । तत्य हुए इस जीवके साथ एक अन्य जीव समान है जो क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर देवोंमें उत्पन्न हुआ। फिर उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त कर और पहले छयासठ सागर काल तक भ्रमण कर सम्यग्मिथ्यात्वको न प्राप्त हो मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। फिर उत्कृष्ट उद्वेलना कालके द्वारा उद्वलना कर तीन समय कालकी स्थितिवाले दो निषेकोंको धारण करके स्थित है। $२१९. इस प्रकार इस क्रमसे जानकर अन्तर्मुहूर्त कम प्रथम छयासठ सागर कालको भी उतारना चाहिये । फिर वहां ठहराकर एक अन्तर्मुहूर्त में जितने समय हों उतने गोपुच्छविशेषोंको और विध्यातसंक्रमणके द्वारा आये हए द्रव्यसे कम अपकर्षण-उत्कर्षणके द्वारा विनाशको प्राप्त हुए साधिक द्रव्यको बढ़ाना चाहिये। इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए इस जीवके साथ एक अन्य जीव समान है जो क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर देवोंमें उत्पन्न हुआ। फिर उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त कर मिथ्यात्वमें गया और वहां उत्कृष्ट उद्वेलना कालके द्वारा उद्वेलनाकर तीन समय कालकी स्थितिवाले दो निषेकोंको धारण करके स्थित है। फिर इस द्रव्यको उत्तरोत्तर एक-एक परमाणुके अधिक क्रमसे तब तक बढ़ाना चाहिए जब तक एक समयमें उद्वेलना भागहारके द्वारा प्राप्त हुए द्रव्यके साथ दो गोपुच्छविशेष बृद्धिको न प्राप्त हों। फिर इस जीवके साथ पूर्वोक्त विधिसे आकर एक समयकम उत्कृष्ट उद्वेलना कालके द्वारा तीन समयकी स्थितिवाले उद्वेलनाको प्राप्त हुए दो निषेकोंको धारण कर स्थित हुआ जीव समान है। इस प्रकार एक समयकम आदिके क्रमसे उतारकर सबसे जघन्य उद्वेलना कालके अन्तिम समयमें स्थापित कर गणितकर्मा शके साथ पहलेके समान मिलान करा देना चाहिये । ६२२०. अब इसी क्रमसे चार समयकी स्थितिवाले तीन निषेकोंसे लेकर एक समय कम आवलिप्रमाण गोपुच्छाओंके उतरनेतक उतारते जाना चाहिये । अब यहां सबसे अन्तिम १. प्रा०प्रतौ 'डिदिसरिसो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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