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________________ १९० जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ फालिधरस्स अपुव्व-अणियट्टि गुणसेढिगोवुच्छाओ असंखेजगुणाओ । कुदो १ असंखेजगुणकमेण अवद्विदणिसेगाणं अंतोमुहुत्तम चाणं चरिमफालीए उवलंभादो । जदि वि अपुब्वगुणसे ढिगोवु च्छाणं जहण्णुक्कस्सपरिणामावडंभेग असंखेजगुणत्तमासंकिजइ तो वि अणियट्टिगुणसेठीणमसंखेजत्ते णत्थि आसंका, तत्थ परिणामाणं जहण्णुक्कस्तभेदाभाव ेण खविद-गुणिदकम्म सियएसु' तासिं समाणत्तुवलंभादो । तम्हा चरिमफालिदव्वमसंखेजगुणं ति घेत्तव्वं । $ १७९ एत्थ ओट्टणं ठविय दव्वपमाणपरिच्छेदो कीरदे । तं जहा - जोगगुणगारेण पदुप्पण्णदिचढगुणहाणिगुणिदसमयपचद्धचरिमफालीए समयू णावलियम तपगदिविगि दिगोवच्छ सहिद अपुव्व-अणिय द्विगुणसेढीणमागमणडुमसंखेजरूवो वट्टिदाए भागे हिदे समयूणावलियम तगोवुच्छाणमुकस्सदव्यमागच्छदि । दिवगुणिदसमयपबद्ध अंतोमुहुत्तोवदिओकडकड्डणभागहारगुणिदवेछांव हि अण्णोष्णन्भत्थरासीए ओवट्टिदे चरिमफालिदच्त्रमागच्छदि । जोगगुणगारेण अपुच्व-अणियट्टिगुणसेढिगोबुच्छागमणहं हविदअसंखेजरूवगुणिदेणोवट्टिदचरिमफालीदो जेणंतोमुहुत्तोवडिओकडकड्डणभागहारगुणिदबेछावडिअण्णोष्णन्भत्थरासी असंखेञ्जगुणो तेण समयूणावलियमे तउकस्सगोवुच्छाहिंतो आवलिप्रमाण गोपुच्छाओंसे अन्तिम फालिके धारक जीवकी अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण सम्बन्धी गुणश्रेणिकी गोपुच्छाएँ असंख्यातगुणी हैं, क्योंकि अन्तिम फालिमें अन्तर्मुहूर्त प्रमाण निषेक असंख्यात गुणितक्रमसे अवस्थित पाये जाते हैं । यद्यपि अपूर्वकरणसम्बन्धी गुणश्रेणिकी गोपुच्छाओंके असंख्यातगुणित होने में आशंका हो सकती है, क्योंकि अपूर्वकरणमें जघन्य और उत्कृष्ट परिणाम पाये जाते हैं, तथापि अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी गुणश्रेणिकी गोपुच्छाओंके असंख्यातगुणित होनेमें कोई आशंका नहीं है, क्योंकि अनिवृत्तिकरणरूप परिणामोंमें जघन्य और उत्कृष्टका भेद नहीं होनेसे क्षपितकर्माश और गुणितकर्मा श जीवों में वे समान पाई जाती हैं । अतः अन्तिम फालिका द्रव्य असंख्यातगुणा है ऐसा ग्रहण करना चाहिये । $ १७९. अब यहां अपवर्तनाको स्थापित कर द्रव्यप्रमाणका निर्णय करते हैं। वह इस प्रकार है- योगगुणकारसे उत्पन्न डेढ़ गुणहाणिगुणित समयप्रबद्ध में एक समय कम आवलिप्रमाण प्रकृतिगोपुच्छा और विकृतिगोपुच्छा सहित अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण सम्बन्धी गुणश्रेणियों को लानेके लिये स्थापित असंख्यात रूपसे भाजित अन्तिम फालिका भाग देने पर एक समय कम आवलिप्रमाण गोपुच्छाओंका उत्कृष्ट द्रव्य आता है । और डेढ़ गुणहानिसे गुणित समयप्रबद्ध में अन्तर्मुहूर्तसे भाजित ऐसे अपकर्षण- उत्कर्षण भागहार से गुणित दो छयासठ सागरकी अन्योन्याभ्यस्तराशिका भाग देने पर अन्तिम फालिका द्रव्य आता है । अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी गुणश्र ेणिकी गोपुच्छाओंके लानेके लिए स्थापित असंख्यात रूपसे गुणित योगके गुणाकारका अन्तिम फालिमें भाग देने पर जो लब्ध आवे उससे यतः अन्तर्मुहूर्तसे भाजित अपकर्षण- उत्कर्षण भागहारसे गुणित जो दो छयासठ सागर की १. ता० प्रती 'खविदकम्मंसिएस' इति पाठः । २ ता०प्रतौ घेत्तव्वं । ण य ओवहणं इति पाठः । ३. आ० प्रतौ 'समयपबद्धचरिमफालीए' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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