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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ कसायबहुत्त कारणं । ण च सत्तमपुढवीदो असंखेञ्जवासाउआ देवा वा कसाउकडा तम्हा तत्थ उक्कड्डणा णत्थि त्ति णासंकणिजं, कसायो चेव उक्कड्डणाए णिमित्तमिदि अवहारणाभावेण खेत्त-भवाणं पि तण्णिमित्तत्ते विरोहाभावादो। पढमसम्मत्ते पडिवजमाणे गुणसेढिणिज्जराए पदेसहाणी होदि त्ति जं भणिदं तं पि ण दोसाय, तिस्से णिरयगईदो आगंतूण मणुस्सेसु उप्पन्जिय पढमसम्मत्तं गेण्हमाणे वि उवलंभादो । तम्हा उवसंत-णिधत्त-णिकाचणाकरणेहि बहुदव्वणिजरापडिसेहहं तिण्हं वेदाणं उत्तपदेसेसु आवरणा कायव्वा त्ति ।
११६. तदो कमेण असंखे०वासाउएसु उववण्णो त्ति किमढे उच्चदे ? असंखेजवासाउएसु दीहबंधगद्धाए बंधित्थिवेदपदेसग्गस्स उवसंत णिधत्त-णिकाचणाकरणविहाणटुं । इत्थिवेदस्स असंखेजवासाउएसु चेव एदाणि तिण्णि करणाणि पाएण होति ति कत्तो णव्वदे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो। असंखेजवासाउएसु बंधाभावेण अणायस्स णqसयवेदपदेसग्गस्स अघट्ठिदिगलणाए असंखेजासु गुणहाणीसु गलिदासु ईसाणकप्पे णqसयवेदावूरणं णिप्फलमिदि चे ण, णिधत्त-णिकाचणाभावमुवगयाणं
शंका–उत्कर्षणके लिये कषायकी अधिकता कारण है और सातवें नरककी अपेक्षा असंख्यात वर्षकी आयुवाले मनुष्य और तिर्यञ्च तथा देव उत्कृष्ट कषायवाले नहीं होते । अतः उनमें उत्कर्षण नहीं बनता ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये; क्योंकि कषाय ही उत्कर्षण का निमित है ऐसा कोई नियम नहीं है, अतः क्षेत्र और भवके भी उत्कर्षणमें निमित्त होनेमें कोई बिरोध नहीं आता।
प्रथम सम्यक्त्वके प्राप्त होनेपर गुणश्रेणी निर्जराके द्वारा वेदोंके द्रव्यकी हानि होगी ऐसा जो कहा वह भी दोषके लिये नहीं है, क्योंकि नरकगतिसे आकर मनुष्योंमें उत्पन्न होकर प्रथम सम्यक्त्वके ग्रहण करनेपर भी प्रदेशहानि पाई जाती है। अतः उपशम, निधत्ति और निकाचना करणोंके द्वारा बहुत द्रव्यकी निर्जराको रोकनेके लिये तीनों वेदोंका उक्त स्थानोंमें संचय कराना चाहिये।
६ ११६. शंका-फिर क्रमसे असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें उत्पन्न हुआ यह क्यों कहा ?
समाधान-असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें सुदीर्घ बन्धककालमें बन्धको प्राप्त हुए स्त्रीवेदके प्रदेशसमूहका उपशमकरण, निधत्तिकरण और निकाचनाकरण करनेके लिये ऐसा कहा ।
शंका असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें ही स्त्रीवेदके ये तीनों करण प्रायः करके होते हैं यह कहाँसे जाना ?
समाधान-इसी सूत्रसे जाना।
शंका—असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें नपुंसकवेदका बन्ध न होनेसे उसमें आय तो होती नहीं उल्टे अधःस्थितिगलनाके द्वारा उसके प्रदेश समूहकी असंख्यात गुणहानियाँ निर्जराको प्राप्त हो जाती हैं । ऐसी स्थितिमें ईशानकल्पमें नपुंसकवेदका संचय करना व्यर्थ है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि निधत्ति और निकाचनापनेको प्राप्त हुए नपुंसकवेदके प्रदेशाग्र
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