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________________ गा० २२ ] अणुभागविहत्तीए परिमाणं ६६. आदेसेण णेरइएमु जहण्णाजहण्णाणुभाग० केव० ? असंखेज्जा । एवं सव्वणिरय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख--मणुसअपज्ज०-देव० भवणादि जाव अवराइद० सव्वविगलिंदिय--पंचिंदियअपज्ज०--सव्व पुढवि०--सव्वआउ०--सव्वतेउ०--सव्ववाउ०-- बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्तापज्जत्त--तसअपज्ज०--उब्विय०--वेउव्वियमिस्सविहंग-तेउ-पम्मलेस्सिया ति । तिरिक्खगईए तिरिक्खेमु जहण्णाजहण्णाणुभाग० केव० ? अणंता। एवं सव्वएइंदिय-सव्ववणप्फदिकाइय-सव्वणिगोद-ओरालियमिस्स०कम्मइय०-मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणि-असंजद-किएह-णील-काउ०-अभव०-मिच्छादिहि-असएिण-अणाहारि ति । ६७. मणुसगईए मणुस्सेसु जहण्णाणुभाग० केव० ? संखेज्जा । अज० असंखेज्जा । एवं पंचिंदिय--पंचिंदियपज्ज०--तस-तसपज्ज०--पंचमण०--पंचवचि०-इत्थि०पुरिस०--आभिणि०--सुद--ओहि०--संजदासंजद०-चक्खु०--ओहिदंस०-सुक्क०-सम्मादिहि०-खइय०-वेदग०-उवसम०-सासण०सम्मामि०-सरिण ति । मणुस्सपज्ज०-मणुसिणीसु जहण्णाजहण्णाणु० केव० ? संखेज्जा । एवं सव्वह०-आहार-आहारमिस्स०अवगद०-अकसा०-मणपज्ज०-संजद०-सामाइय-छेदो०-परिहार०--सुहुमसांपराय०-जहाक्वादसंजदे त्ति । एवं परिमाणाणुगमो समत्तो । ९९६. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चन्द्रियतिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव,भवनवासीसे लेकर अपराजित नामक अनुत्तर तकके देव, सब विकलेन्द्रिय, पञ्चन्द्रियअपर्याप्त, सब पृथिवीकायिक, सब अप्कायिक, सब तैजसकायिक, सब वायुकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर तथा उनके पर्याप्त और अपर्याप्त, बस अपर्याप्त,वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, विभंगज्ञानी, तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावालोंमें जानना चाहिए । तिर्यञ्चगतिमें तिर्यञ्चोंमें जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इसी प्रकार सब एकेन्द्रिय, सब वनस्पतिकायिक, सब निगोदिया, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, असंयत, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारकोंमें जानना चाहिए। ६ ९७. मनुष्यगतिमें मनुष्योंमें जघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस, त्रसपर्याप्त, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, स्त्रीवेदी. पुरुषवेदी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, संयतासंयत, चक्षुदर्शनवाले, अवधिदर्शनवाले, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि,वेदकसम्यग्दृष्टि,उपशमसम्यग्दृष्टि,सासादनसम्यग्दृष्टि,सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संज्ञी जीवोंमें जानना चाहिए । मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धि, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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