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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ अणुभागवत्ती ४
चक्खु ० - ओ हिंदंस ० -- तेउ पम्म सुक्क० -- सम्मादिहि-वेदय ० -- खइय० - उवसम ०-- सासण ०सम्मामि० सण त्ति । मणुसपज्ज० -- मणुसिणी० उजस्साणुक्कस्साणुभाग० केव० १ संखेज्जा । एवं सव्वद्व० - आहार० - आहार मिस्स ० - अवगद ० - अकसा०--मणपज्ज०--संजदसामाइय०-छेदो०- परिहार० - सुहुमसां पराय ० - जहाक्खाद ० संजदेति ।
एवमुक्कस्साणुभागपरिमाणाणुगमो समत्तो ।
६५. जहण्णए पदं । दुविहो णिदे सो- ओघे० आदेसे ० । तत्थ ओघेण मोह० जहण्णाणुभागविहत्तिया केत्तिया ? संखेज्जा । [ अजहरा ० ] दव्वपमाणेण केव० ? अनंता । एवं कायजोगि० - ओरालिय० णवुंस ० -- चत्तारिकसाय ०-अचक्खु०भवसि ० - आहारि त्ति ।
दर्शनवाले, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्याबाले, शुकुलेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, वेदगसम्यग्यदृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संज्ञी जीवोंमें जानना चाहिए । मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, कषायरहित, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, और यथाख्यातसंयत जीवोंमें जानना चाहिए ।
विशेषार्थ- पहले अनुयोगद्वार में यह बतलाया है कि ओघ और आदेश से अमुक अनुभागवाले जीव समस्त जीवों के कितने भागप्रमाण हैं और इस अनुयोगद्वार में उनका परि माग बतलाया है । श्रघसे मोहनीयकर्मके अनुभागसे युक्त जीवराशि अनन्त है । किन्तु उसमें उत्कृष्ट अनुभागवाले जीव केवल असंख्यात ही हैं, क्योंकि एक तो मोहनीयका उत्कृष्ट अनुभागबन्धसंज्ञी पन्द्रिय जीव करते हैं। दूसरे अन्य इन्द्रियवालों में मोहनीयका उत्कृष्ट अनुभाग उन्हीं के पाया जाता है जो संज्ञी पञ्च ेन्द्रिय इसका घात नहीं करके उनमें उत्पन्न होते हैं, इसलिए इनका प्रमाण असंख्यात कहा है। शेष सब मोहनीयकी सत्तावालोंके अनुत्कृष्ट अनुभाग होता है अत: उनका प्रमाण अनन्त कहा है। सामान्य तिर्यञ्च से लेकर अनाहारक पर्यन्त जिन मार्गणा में जीवराशिका प्रमाण अनन्त है उनमें ओघ की तरह ही परिमाण होता है । नरकगति से लेकर संज्ञी पर्यन्त असंख्यात राशिवाली मार्गणाओं में उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट दोनों ही विभक्तिवाले जीव असंख्यात होते हैं । तथा मनुष्य पर्याप्त से लेकर यथाख्यातसंयत पर्यन्त संख्यात राशिवाली मार्गणाओं में दोनों विभक्तिवालों का परिमाण संख्यात ही होता है । किन्तु उनमें भी एक भागप्रमाण उत्कृष्ट अनुभागवाले जीव होते हैं और बहु भागप्रमाण अनुत्कृष्ट अनुभागवाले जीव होते हैं जैसा कि भागाभाग अनुयोगद्वार में बतलाया है ।
इस प्रकार उत्कृष्ट अनुभाग परिमाणानुगम समाप्त हुआ ।
$ ९५. प्रकृतमें जघन्यसे प्रयोजन है । निर्देश दो प्रकारका है - श्रघनिर्देश और देशनिर्देश। उनमेंसे ओधकी अपेक्षा मोहनीयकर्मके जघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । द्रव्यप्रमाणसे अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसक वेदी, क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, अचक्षुदर्शनवाले, भव्य और आहारकों में जानना चाहिए ।
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