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________________ www.rrmirmirrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrorm गा० २२] अणुभागविहत्तीए णाणाजीवेहि भंगविचओ ५७ सव्वणिगोद-कायजोगि--ओरालि०-ओरालिमिस्स०--कम्मइय०--णवंस०-चत्तारिक०दोअण्णाण०-असंजद०--अचक्खु०-किण्ह-णील-काउ०-भवसि०--अभवसि०-मिच्छादिहि-असएिण-आहारि-अणाहारि ति । ___ ८६. आदेसेण णेरइएसु मोह० उक्कस्साणुभाग० सव्वजीवाणं केव० १ असंखे०भागो । अणुक्क विहत्ति० सव्वजी० केव० ? असंखे० भागा । एवं सव्वणेरइयसव्वपंचिंदि तिरिक्व-मणुस-मणुसअपज्ज०-देव०-भवणादि जाव अवराइद०-सव्ववियलिंदिय-सव्वपंचिंदिय--सव्वचत्तारिकाय-बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्तापजत्तसव्वतसकाइय-पंचमण०-पंचवचि०-वेउन्वि०-वेउव्वियमिस्स०-इत्थि०-पुरिस०-विहंग०आभिणि-सुद०-ओहि०-संजदासंजद०-चक्खु०-अोहिदंस०-तेउ-पम्प-सुक्क०-सम्मादि०वेदग०-खइय०-उवसम-सासण-सम्मामि०-सणिण त्ति । ६०. मणुसपज्ज ०-मणुसिणी० उक्कस्साणुभाग० सव्वजी० केव० ?संखे०भागो। अणुक्क० संखेज्जा भागा। एवं सव्वह०-आहार०-आहारमिस्स०-अवगद-अकसा०और शेष बहु भागप्रमाण अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले हैं। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्च, सब एकेन्द्रिय, सब वनस्पतिकायिक, सब निगोदिया, सामान्य काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी,नपुंसकवेदी, क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, मतिअज्ञानी श्रुतअज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनवाले, कृष्ण लेश्यावाले, नील लेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारी और अनाहारी जीवोंमें जानना चाहिये । विशेषार्थ-ओघसे उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले असंख्यात और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले अनन्त होते हैं। इसीसे उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले अनन्तवेंभाग और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले अनन्त बहुभाग कहे हैं। यहाँ मूलमें अन्य जितनी मार्गणाएं गिनाई हैं उनमें यह व्यवस्था बन जानेसे उनकी प्ररूपणा ओघके समान जाननेकी सूचना की है। ८९. श्रादेशकी अपेक्षा नारकियोंमें मोहनीयकर्मके उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चन्द्रियतिर्यञ्च, मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव, भवनवासीसे लेकर अपराजित अनुत्तर तकके देव, सब विकलेन्द्रिय, सब पञ्चन्द्रिय, सब पृथिवीकायिक, सब जलकायिक, सब तेजस्कायिक, सब वायुकायिक, बादर वनस्पतिकायिकप्रत्येकशरीर तथा उनके पर्याप्त अपर्याप्त, सब त्रसकायिक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों बचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, संयतासंयत, चक्षुदर्शनवाले, अवधिदर्शनवाले, तेजोलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिध्यादृष्टि और संज्ञी जीवोंमें जानना चाहिए। ६९०. मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके संख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी आहारकमिश्रकाययोगी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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