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गा० २२]
अणुभागविहत्तीए अंतरं ६२. इंदियाणु० एइंदिय-बादर-सुहुम-पज्जत्तापज्जत्तएमु सव्वविगलिंदियपज्जत्तापज्जत्तएसुच मोह० उक्कस्साणुक्कस्साणुभागंतरंणत्थि। पंचिंदिय-पंचिं०पज्जत्तएसु मोह० उक० ज० अंतोमु०, उक्क० सागरोवमसहस्साणि पुव्वकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि सागरोवमसदपुधत्तं । अणुक्क० ओघं । पंचिंदियअपज्ज० मोह० उक्कस्साणुक्कस्स० णत्थि अंतरं ।
६ ६३. कायाणु० पंचण्हं कायाणमेइंदियभंगो । तस -- तसपज्जत्तएमु मोह. उक्क० केव० १ जहण्णेण अंतोमु०, उक्क० वेसागरोवमसहस्साणि पुवकोडिपुधत्तेणभहियाणि वेसागरोवमसहस्साणि । अणुक्क० ओघं । तसअपज्ज. पंचिंदियअपज्जत्तभंगो।
६४. जोगाणु० पंचमण-पंचवचि०-कायजोगि०-ओरालि०-ओरालियमिस्स०वेउव्विय०-वेउव्वियमिस्स-कम्मइय०-आहार०--आहारमिस्स० उक्क० अणुक्क० णत्थि अंतरं । णवरि कायजोगीसु अणुक्क० ओघभंगो। अनुभागका उत्कृष्ट अन्तर कहना चाहिए। पञ्चन्द्रियतिर्यञ्चअपर्याप्त आदि मार्गणाओंमें अन्य पर्यायसे उत्कृष्ट अनुभाग लेकर आता है, वहाँ उसकी प्राप्ति सम्भव नहीं है, इसलिए इनमे उत्कृष्ट
और अनुत्कृष्ट अनुभागके अन्तरका निषेध किया है। देवोंमें और सहस्रार कल्प तकके देवोंमे नारकियोंके समान स्पष्टीकरण है।
६२. इन्द्रियकी अपेक्षा एकेन्द्रिय, उनके सभी बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त और अपर्याप्त एकेन्द्रियोंमें तथा विकलेन्द्रियोंमे और उनके सभी पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों में मोहनीयकर्म के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागका अन्तर नहीं है । पंचेन्द्रिय और पञ्चन्द्रियपर्याप्तकोंमे मोहनीयकर्मके उत्कृष्ट अनुभागका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्टसे पञ्चेन्द्रियोंमे पूर्वकाटिपृथक्त्वसे अधिक एक हजार सागर है और पञ्चेन्द्रियपर्याप्तकोंमें सौ पृथक्त्वसागर है। अनुत्कृष्ट अनुभागका अन्तर ओघके समानहै । पञ्चेन्द्रियपर्याप्तकोंमे मोहनीयकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागका अन्तर नहीं है।
विशेषार्थ-एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और उनके भेद-प्रभेदोंमे तथा पञ्चन्द्रिय अपर्याप्तकोंमें उसी पर्यायमे उत्कष्ट अनुभागकी प्राप्ति सम्भव नहीं है, इसलिए यहाँ भी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके अन्तरका निषेध किया है। पञ्चन्द्रियद्विकमें नारकियोंके समान स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए । मात्र इनकी कायस्थिति भिन्न होनेसे इनमें उत्कृष्ट अनुभागका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी अपनी कायस्थितिप्रमाण कहना चाहिए। इसी प्रकार आगे भी मार्गणाओंमे यथासम्भव अन्तरकाल घटित कर लेना चाहिए । जहाँ विशेषता होगी उसका स्पष्टीकरण करेंगे।
६३. कायकी अपेक्षा पाँचों स्थावरकायोंमे एकेन्द्रियके समान भङ्ग होता है। त्रस और सपर्याप्तकोंमे मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट अनुभागका अन्तर कितना है ? जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर बसोंमें पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक दो हजार सागर और त्रसपर्याप्तकोंमें केवल दो हजार सागर है। अनुत्कृष्ट अनुभागका अन्तर ओघके समान है। त्रस अपर्याप्तकोंमे पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग होता है।
६४. योगकी अपेक्षा पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, सामान्य काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, आहारककाययगी और आहारकमिश्रकाययोगीमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागका अन्तर नहीं है। इतनी विशेषता है कि काययोगियोंमें अनुत्कृष्ट अनुभागका अन्तर
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