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________________ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ $ ६५. वेदाणु ० इत्थिवेदएस मोह० उक्क० केव० ? ज० अंतोमु०, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं । अणुक्क० जहण्णुक्क० ओघं । पुरिसवेद० मोह० उक० केव० १ जह० अंतोमु०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । अणुक० जहण्णुक्क० ओघं । णवुंस० मोह० उक्क० ज० अंतोमु०, उक्क० अनंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्क० जहण्णुक्क० ओघं । अवगदवेदे • उक्क० अणुक्क० अणुभागविहत्तियाणं णत्थि अंतरं । ४६ ९ ६६. कसायाणुवादेण कोध-माण- माया - लोहकसाईसु मोह० उक्कस्साणुक्कस्स० अंतरं । एवमकसाईणं । ६७. णाणाणु० मदिअण्णाणि - सुदण्णाणीसु मोह० उक्क० केव० १ ज० अंतोमु०, उक्क० अनंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्क ० जहण्णुक्क० ओघं । के समान है । विशेषार्थ - एक योगके रहते हुए दो बार उत्कृष्ट या अनुत्कृष्ट अनुभाग सम्भव नहीं है, इसलिए इनमें अन्तरका निषेध किया है । मात्र काययोगमें अनुत्कृष्ट अनुभागकी प्राप्ति दो बार सम्भव होनेसे इसमें अनुत्कृष्ट अनुभागका अन्तर ओघ के समान बन जाता है । ६ ६५. वेदकी अपेक्षा स्त्रीवेदियों में मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट अनुभागका अन्तर कितना है ? जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सौ पृथक्त्वपल्य है । अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर ओधके समान है । पुरुषवेदियों में मोहनीयकर्मके उत्कृष्ट अनुभागका अन्तर कितना है ? जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सौ पृथक्त्व सागर है । अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर धके समान है । नपुंसकवेदियोंमे मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट अनुभागका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो कि असंख्यात पुद्गल परावर्तनप्रमाण है । तथा अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर के समान है । अवगतवेदियों में उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीवोंका अन्तर नहीं है । 1 विशेषार्थ - उपशमश्रेणि पर चढ़ते समय अपगतवेद अवस्थामे प्रथम अनुभागकाण्डक के रहते हुए उत्कृष्ट अनुभागविभक्ति होती है । यतः अपगतवेदी जीवके इस अवस्थाकी प्राप्ति दो बार सम्भव नहीं है, इसलिए अपगतवेदी जीवके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के अन्तरका निषेध किया है। शेष कथन सुगम है । $ ६६. कषायकी अपेक्षा, क्रोध, मान, माया और लोभ कषायवाले जीवोंमें मोहनीयकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागका अन्तर नहीं है । इसी प्रकार कषायरहित जीवांमें भी जानना चाहिये । ६७. ज्ञानकी अपेक्षा मतिज्ञानी और श्रुत ज्ञानियोंमें मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट अनुभागका अन्तर कितना है ? जधन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है । वह अनन्तकाल असंख्यात पुद्गलपरावर्तनप्रमाण है । अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट १. श्रा० प्रतौ - परियट्टा । श्रवगदवेदे इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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