SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ देसूणा । एवमजहणणं पि। मुहुमसांपरायि० मोह० जहएणाण. जहएणक० एगस० । अज० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु०। जहाक्खाद० अकसायभंगो। संजदासंजद. मोह० जहएणाणु० ज० अंतोमु०, उक्क० पुन्चकोडी देसूणा । एवमजहएणं पि । असंजद० मोह० जहण्णाणु० जहएणुक्क० अंतोमु० । अज० ज० अंतोमु०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। ___५४. दसणाणु० चक्खु० मोह० जहणणाणु० जहएणुक्क० एगस० । अज. ज० खुद्दाभवग्गहणं, उक्क० वेसागरोवमसहस्साणि। अचक्खु० मोह० ज० जहएणक्क० एगस० । अर्ज० ज० अणादिओ अपज्जवसिदो अणादिओ सपज्जवसिदो। ओहिदंसणी. ओहिणाणिभंगो। काल कुछ कम पूर्वकोटी है। इसी प्रकार अजघन्य अनुभागविभक्तिका काल भी जानना चाहिये। सूक्ष्मसाम्परायिक संयतोंमें मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। यथाख्यातसंयतोंमें कषायरहित जीवोंके समान भंग होता है। संयतासंयतोंमें मोहनीयकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि है। इसी प्रकार अजघन्य अनुभागविभक्तिका भी काल जानना चाहिए । असंयतोंमें मोहनीयकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है और अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त तथा उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक है। विशेषार्थ यहाँ जिन संयमोंमें क्षपकश्रेणी सम्भव है उनमें जघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। कारण कि उस उस संयमके अन्तिम समयमें जघन्य अनुभाग होता है। मात्र संयतोंके सूक्ष्मसाम्यरायके अन्तिम समयमें जघन्य अनुभाग होता है। सूक्ष्मसाम्यरायसंयम, सामायिकसंयम और छेदोपस्थापनासंयमका जघन्य काल एक समय होनेसे इनमें अजघन्य अनुभागका जघन्य काल एक समय कहा है। इन सबमें अजघन्य अनुभागका उत्कृष्ट काल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। यथाख्यातसंयम अकषायी जीवोंके होता है, इसलिए इसमें कालका विचार अकषायी जीवोंके समान जाननेकी सूचना की है। अब न रहे परिहारविशुद्धिसंयम, संयमासंयम और असंयम सो इनमें जघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल तथा अजघन्य अनुभागका जघन्य काल अन्तमुहूर्त कहा है, क्योंकि इनका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है। तथा इनका उत्कृष्ट काल प्रारम्भके दोका कुछ कम पूर्वकोटि होनेसे उनमें अजघन्य अनुभागका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है और असंयतोंमें अजघन्य अनुभागका उत्कृष्ट काल जिस प्रकार मत्यज्ञानियोंमें असंख्यात लोकप्रमाण घटित करके बतला आये हैं उसी प्रकार यहाँ भी घटित कर लेना चाहिए। ६ ५४. दर्शनकी अपेक्षा चक्षुदर्शनियोंमें मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण और उत्कृष्ट काल दो हजार सागर है । अचक्षुदर्शनियोंमें मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अनादि अनन्त और अनादि सान्त है। अवधिदर्शनवालोंमें अवधिज्ञानियोंके समान भङ्ग होता है। १. प्रा० प्रतौ एगस० उक्क अंतोमु० अज० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy