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________________ ३८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ अज० ज० अंतोमु०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । णवंसयवेद० जहण्णाणु० जहण्णुक० एगस० । अज० ज० एगस०, उक्क० अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियह । अवगद० मोह. जहण्णाणु० जहण्णुक्क. एसगसमओ। अज० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु०। ५१. कसायाणुवादेण कोधकसाएमु मोह० जहण्णाणु० जहण्णुक्क० एगस० । अज० ज० एगस०, उक्क० अंतोमुहुत्तं । एवं माण-माया-लोभाणं । अकसाएसु मोह. जहण्णाणु० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवमजहएणं पि । ५२. णाणाणुवादेण मदि-सुदअण्णाणीसु मोह० जहएणाणु० ज० उक्क० अंतोमु० । अज० ज० अंतोमु०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। विहंगणाणीसु मोह. और उत्कृष्ट काल एक समय है । तथा अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल सौ पृथक्त्वसागर है। नपुंसकवेदियोंमें जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है तथा अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है। वह अनन्त काल असंख्यात पुद्गलपरावर्तनप्रमाण है। अपगतवेदियोंमें मोहनीय कर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त है। विशेषार्थ तीनों वेदोंमें मोहका जघन्य अनुभाग अपने अपने सवेदभागके अन्तिम समयमें होता है, अतः इनमें जघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जघन्य काल एक समय और पुरुषवेदका जघन्य काल अन्तमुहूर्त होने से इनमें अजघन्य अनुभागका जघन्य काल उक्त प्रमाण कहा है । तथा इनमें अजघन्य अनुभागका उत्कृष्ट काल अपनी अपनी कायस्थितिप्रमाण होता है यह स्पष्ट ही है। अपगतवेदमें सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समयमें जघन्य अनुभाग होनेसे इसमें जघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है । मोहकी सत्तावाले अपगतवेदीका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त होनेसे इसमें अजघन्य अनुभागका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा है। ६५१. कषायकी अपेक्षा क्रोधकषायवालोंमें मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है तथा अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। इसी प्रकार मान, माया और लोभमें भी जानना चाहिये। कषायरहित जीवोंमें मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार अजघन्य अनुभागविभक्तिका भी काल जानना चाहिये। विशेषार्थ-चारों कषायोंमें मोहका जघन्य अनुभाग अपने अपने क्षयके अन्तिम समयमें होता है, अतः इनमें जघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा प्रत्येक कषायका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त होनेसे इनमें अजघन्य अनुभागका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तम हर्त कहा है। उपशान्तकषायका भी जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है, अतः अकषायी जीवोंमें जघन्य और अजघन्य अनुभागका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा है.।। ....६५२. ज्ञानकी अपेक्षा मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानियों में मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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