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________________ गा० २२ ] अणुभागविहत्तीए कालो अंतोमु० । कम्मइय० मोह० जहण्णाणु० जह० एगसमो, उक्क० तिण्णिसमया। एवमजहण्णं पि । आहारकायजोगी. मोह. जहण्णाणु० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु०। अज०ज० एगस०, उक्क० अंतोमु०। आहारमिस्स० मोह० जहण्णाजहण्ण. जहण्णुक्क० अंतोमु०। ५०. वेदाणु० इत्थिवेदएसु मोह० जहण्णाणु० जहण्णुक्क० एगस० । अज. ज० एगस०, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं । पुरिस० मोह० ज० जहण्णुक० एगस० । काल अन्तमुहूर्त है । अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। कार्मणकाययोगियोंमें मोहनीय कर्मकी जघन्य अनभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय और र उत्कृष्ट काल तीन समय है। इसी प्रकार अजघन्य का भी है। आहारककाययोगियोंमें मोहनीय कर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। आहारकमिश्रकाययोगियोंमें मोहनीय कर्मकी जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। विशेषार्थ-पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी और औदारिककाययोगी जीवोंके क्षपक सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान सम्भव है, इसलिए इनमें जघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा पाँचों मनोयोग और पाँचों वचनयोगोंका मरण और व्याघातकी अपेक्षा तथा औदारिककाययोगका मरणकी अपेक्षा एक समय काल होता है, इसलिए इनमें अजघन्य अनुभागका जघन्य काल एक समय कहा है । जो दसवें क्षपक गुणस्थानमें जघन्य अनुभागको प्राप्त करनेके एक समय पूर्व काययोगी होता है उसके अजघन्य अनुभागका जघन्य काल एक समय देखा जाता है. अतः वह उक्त प्रमाण कहा है। सूक्ष्म अपर्याप्त एकेन्द्रियोंके जिस प्रकार काल घटित करके बतला आये उसी प्रकार औदारिकमिश्रकाययोगमें घटित कर लेना चाहिए। वैक्रियिककाययोग और आहारककाययोगका जघन्य काल एक समय होनेसे इनमें जघन्य और अजघन्य अनुभागका जघन्य काल एक समय कहा है। तथा इन दोनों योगोंका उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त होनेसे इनमें जघन्य और अजघन्य अनुभागका उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा है। जो वैक्रियिकमिश्रकाययोगी प्रथम समयमें जघन्य अनुभागके साथ रहता है और दूसरे समयमें उसे बढ़ा लेता है उसके जघन्य अनुभागका एक समय काल उपलब्ध होनेसे वह एक समय कहा है। इसमें जघन्य और अजघन्य अनुभागका उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है यह स्पष्ट ही है। साथ ही जो असंज्ञी मर कर वैक्रियिकमिश्रकाययोगी होता है उसीके जघन्य अनुभाग होता है, अन्यके नहीं, इस लिए अजघन्य अनुभागका भी जघन्य काल अन्तमुहूर्त प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है । आहा. रकमिश्रकाययोगका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त होनेसे इसमें जघन्य और अजघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा है। कार्मणकाययोगका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय होनेसे इसमें जघन्य और अजघन्य अनुभागका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय कहा है । यहाँ जिन योगोंमें अजघन्य अनुभागका उत्कृष्ट काल घटित नहीं किया है वह उन योगोंके उत्कृष्ट काल प्रमाण जानना चाहिए। ६५०. वेदकी अपेक्षा स्त्रीवेदियोंमें मोहनीय कर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल सौ पृथक्त्वपल्योपम है। पुरुषवेदियोंमें मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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