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________________ ३८६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ मेवे त्ति घादेणुप्पण्णाणं पि बंधहाणववएससिद्धीदो। संपहि अण्णेगो जीवो जो एगछहाणेणणअसंखेजलोगमेत्तहाणधारो तेण उक्कस्सपरिणामहाणपरिणदेण संपहियचरिमउव्वंके घादिदे दुचरिमअकस्स हेहदो अणंतगुणहीणं तत्तो हेहिमअणंतगुणहीणउव्वंकटाणादो अणंतगुणं होदूण अण्णं हदसमुप्पत्तियहाणमुप्पज्जदि । पुणो दुचरिमपरिणामहाणेण तम्मि चेव चरिमउव्वंके घादिदे विदियमणंतभागवडियादहाणमुप्पज्जदि। पुणो तिचरिमादिविसोहिहाणेहि तम्मि चेव चरिमउबके घादिज्जमाणे परिणामहाणमेत्ताणि चेव हदसमुप्पत्तियहाणाणि उप्पज्जति । किं पमाणाणि घादहाणहेदुपरिणामहाणाणि ? रूवूणछटाणब्भहियअसंखेज्जलोगमेत्तछटाणपमाणाणि । पुणो दुचरिमुव्वंके तेहि चेव परिणामहाणेहि पुत्वविहाणेण परिवाडीए घादिदे एत्थ वि परिणामहाणमेत्ताणं घादहाणाणं पंती अपुणरुत्ता पुचिल्लघादहाणपंतीए हेहदो उप्पज्जदि । पुणो तेहि चेव परिणामहाणेहि पुव्वविहाणेण तिचरिमुव्वंके घादिदे एत्थ वि अणुभागघादझवसाणहाणमेत्ताणि चेव हदसमुप्पत्तियहाणाणि विदियपत्तीए हेदृदो पंतियागारेण उप्पजति । एवं रूवूणछटाणमेत्तेसु अणुभागबंधहाणेसु घादिजमाणेसु रूवूणछहाणमेत्ताओ अणुभागघादज्झवसाणहाणपमाणायदाओ घादहाणपंतीओ उप्पज्जति । एवमसंखेजलोगमेतबंधसमुप्पत्तियअकुव्वंकाणं विच्चालेसु घादझवसाणहाणपमाणा समाधान-नहीं. क्योंकि बन्धस्थान ही हैं इसलिए घातसे उत्पन्न हुए स्थानोंकी भी बन्धस्थान संज्ञा सिद्ध होती है। अब एक ऐसा जीव लो जो एक षट्स्थानसे कम असंख्यात लोकमात्र स्थानोंका धारक है। उत्कृष्ट परिणामस्थानसे युक्त उस जीवने साम्प्रतिक अन्तिम वकका घात किया है। घात करने पर उसके अन्य हतसमुत्पत्तिकस्थान उत्पन्न होता है जो द्विचरम अष्टांकसे नीचे अनन्तगुणा हीन और उससे नीचेके अनन्तगुणे हीन उर्वकस्थानसे अनन्तगुणा होता है । पुन: द्विचरम परिणामस्थानसे उसी अन्तिम उवकका घात किये जाने पर अनन्तभागवृद्धिको लिये हुए दूसरा घातस्थान उत्पन्न होता है। पुन: त्रिचरम आदि विशुद्धिथानोंसे उसी अन्तिम उर्वकका घात किये जाने पर परिणामस्थानोंकी संख्याके बराबर ही हतसमुत्पत्तिकस्थान उत्पन्न होते हैं। शंका-घातस्थानोंके कारणभूत परिणामस्थानोंका प्रमाण कितना है ? समाधान-एक कम षट्स्थान अधिक असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानोंका जितना प्रमाण है उतना है। ६६२३. पुन: पूर्व विधानके अनुसार क्रमबार उन्हीं परिणामस्थानोंसे द्विचरम उर्वकका घात किये जाने पर यहां भी पहले कहे गये घातस्थानोंकी पंक्तिसे नीचे परिणामस्थानप्रमाण घातस्थानोंकी अपुनरुक्त पंक्ति उत्पन्न होती है। पुन: पूर्व विधानके अनुसार उन्हीं परिणामस्थानोंसे त्रिचरम उर्वंकका घात किये जाने पर यहां भी दूसरी पंक्तिसे नीचे पंक्तिरूपसे अनुभागघाताध्यवसायस्थानप्रमाण हतसमुत्पत्तिकस्थान उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार एक कम पदस्थानप्रमाण अनुभागबन्धस्थानोंके घाते जाने पर एक कम षट्स्थानप्रमाण अनुभागघाताध्यवसायस्थानप्रमाण लम्बी घातस्थानपंक्तियाँ उत्पन्न होती हैं। इस प्रकार असंख्यात लोकप्रमाण बन्धसमुत्पत्तिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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