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________________ २६२ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ भागविती ४ हाइदूण गदसवेदिचरिमसमय पुरिसवेदावकबंधो कधं सम्मत्तजहण्णाणुभागादो अनंतगुणो, पुरिसवेदणवकबंधस्स अणुसमय ओवट्टणाकालादो सम्मत्त अणुसमयओवट्टरणाकालस्स संखेज्जगुणत्तादो । * इत्थवेदस्स जहणाणुभागो अतगुणो । ४३६. कुदो ? पुरिसवेदस्स जहण्णाणुभागेण विसईकय समयं पेक्खिदूरग हेडा अंतोमुहुत्तमोसरिय द्विदइत्थिवेदुदयाणुभागग्गहणादो । तं जहा, चरिमसमयसवेदेण बद्धपुरसवेदाणुभागो थोवो । तत्थेव तस्सेव वेदस्स उदद्याणुभागो अांतगुणो । तत्तो दुरिमबंधो अनंतगुणो । तत्थेव तदुदओ अनंतगुणो । तत्तो तिचरिमतब्बंधो अंतगुणो । तत्थेव उदओ अनंतगुणो । एदेण कमेण हेहा गंतूण इत्थिवेदजहण्णाणुभागेण विसयीकयसमए पुरिसवेदोदएण खवगसेटिं चढिदस्स पञ्चग्गबंधो उवरिमतदुदयादो अनंतगुणो । तत्थतणो चेव पुरिसवेदोदओ अनंतगुणो । तत्तो इत्थिवेदोदएण खवगसेटिं चडिस्स चरिमसमयउदओ अनंतगुणो, मुम्मुरग्गिसमाणत्तादो । तेण पुरिसवेदणाणुभगादो इत्थवेदजहण्णाणुभागो अनंतगुणोति सिद्धं । कम करके सवेद भाग के अन्तिम समय में पुरुषवेदका जो नवकवन्ध प्राप्त होता है वह सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागसे अन तगुणा कैसे हो सकता है ? अर्थात् पुरुषवेदका बन्ध पूर्वकरणगुण स्थानके पहले समय से ही अनन्तगुण हीन अनन्तगुण हीन अनुभागको लेकर होता है तब सवेदभाग के अन्तिम समयमें उसका जो नवकबन्ध होता है वह सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागसे कैसे है। समाधान नहीं, क्योंकि पुरुषवेदके नत्रवन्धका प्रति समय अपवतन घात होनेका जितना काल है उससे सम्यक्त्व के प्रति समय अपवर्तन घात होनेका काल संख्यातगुणा है । अतः सम्यक्त्वके जघन्य अनुभाग से पुरुषवेदका जघन्य अनुभाग अनन्तगुरणा है । * उससे स्त्रीवेदका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । $ ४३९. क्योंकि जिस समय में पुरुषवेदका जघन्य अनुभाग होता है उससे पीछे एक अन्त मुहूर्त जाकर उदय प्राप्त स्त्रीवेदका जो अनुभाग पाया जाता है उस अनुभागका यहाँ पर ग्रहण किया है। खुलासा इस प्रकार है -- सवेदी जीवके द्वारा अन्तिम समय में पुरुषवेदका जो अनुभाग बँधा है वह थोड़ा है। उससे वहीं पर पुरुषवेदका जो अनुभाग उदयमें आता है वह अनन्त गुणा है। उससे द्विचरम समय में जो अनुभाग बँधता है वह अनन्तगुणा है। उससे वहीं पर पुरुषका जो अनुभाग उदयमें आता है वह अनन्तगुणा है। उससे त्रिचरम समय में होनेवाला पुरुषका अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है । उससे वहीं पर उद्यागत अनुभाग अनन्त गुणा है । इस क्रम से पीछे जाकर, जिस समय में स्त्रीवेदका जघन्य अनुभाग होता है उस समय में पुरुषवेदके उदय से क्षक श्रेणि चढ़नेवाले जीवके जो नवीन अनुभागबन्ध होता है वह उससे अगले समय में उदयागत पुरुषवेदके अनुभाग से अनन्त गुणा है। उससे उसी समय में होनेवाला पुरुषवेदका उद्य अनन्त गुणा है । उससे स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणि चढ़नेवाले जीवके अन्तिम समय में होनेवाला अनुभागोदय अनन्त गुणा है । क्योंकि स्त्रीवेद कण्डे की अग्नि के समान है । अत: पुरुषवेदके जघन्य अनुभाग से स्त्रीवेदका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है, यह सिद्ध हुआ । 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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