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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ एवं पारसक०-णवणोकसायाणं । सम्मत्त जहणणाण. बारसक०-णवणोक० किं ज. अज० ? णि. अज० अणंतगुणब्भहिया । अणंताणु०कोध० जहएणाणु० मिच्छत्त०. सम्मत्त ०-बारसक०-णवणोक० णि अजहएणा अणंतगुणब्भहिया । तिएिणक० तंतु छहाणपदिदा । एवं तिएहमणंताणुबंधीणं । पढमपुढवि० देवोघं । भवण०--वाणवेतराणं णेरइयभंगो । णबरि भवण०-वाणवे० सम्म० जहएणं गत्थि ।। ४२४. विदियादि जाव सत्तमि तिमिच्छत्त० जहएणाए. अणंताणु० चउक्क० सिया अत्थि सिया पत्थि । जदि अत्थि किं ज० अज०१ तं तु छटाणपदिदा । बारसक०णवणोक० णियमा जहण्णा । एवं बारसक०-णवणोकसायाणं । अणंताणु०कोध० जह० मिच्छ०-बारसक०--णवणोक० किं ज० अज० १ णि० जहण्णा । माण--माया--लोभ० किं ज० किमज० १ तं तु छटाणपदिदा । एवं माण-माया-लोभाणं । $ ४२५. तिरिक्खगदीए तिरिक्ख--पंचिदियतिरिक्ख--पंचि०तिरि०पज० मिच्छत्त० जहण्णाण सम्मत्त सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि णियमा अज० अजघन्य होता है ? वह जघन्य भी होता है और अजघन्य भी होता है। यदि अजघन्य होता है तो वह षट्स्थान पतित होता है । इसी प्रकार बारह कषाय और नव नोकषायोंकी अपेक्षा सन्निकर्षे जानना चाहिए । सम्यक्त्वकी जघन्य अनुभागविभक्तिवालेके बारह कषाय और नव नोकषायोंका क्या जघन्य होता है या अजघन्य ? नियमसे अनन्तगुणा अधिक अजघन्य होता है। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य अनुभागविभक्तिवालेके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंका नियमसे अनन्तगुणा अधिक अजघन्य होता है, । अनन्तानुबन्धी मान, माया और लोभका जघन्य भी होता है और अजघन्य भी होता है। यदि अजघन्य होता है तो वह षट् स्थान पतित होता है। इसी प्रकार शेष तीन अनन्तानुबन्धीकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिए। पहली पृथिवी, सामान्य देव, भवनवासी और व्यन्तरोंमें नारकियोंके समान भंग होता है। इतना विशेष है कि भवनवासी और व्यन्तरोंमें सम्यक्त्वका जघन्य अनुभाग नहीं होता। ४२४. दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभागविभक्तिवालेके अनन्तानुबन्धीचतुष्क कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं होता । यदि होता है तो जघन्य होता है या अजघन्य ? वह जघन्य होता है और अजघन्य भी। यदि अजघन्य होता है तो वह षट्स्थानपतित होता है। बारह कषाय और नव नोकषाय नियमसे जघन्य अनुभागको लिये हुए होती हैं। इसी प्रकार बारह कषाय और नव नोकषायोंकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिए। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य अनुभागविभक्तिवालेके मिथ्यात्व, बारह कषाय, और नव नोकषायोंका क्या जघन्य होता है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होता है । अनन्तानुबन्धी मान, माया और लोभका क्या जघन्य होता है या अजघन्य ? वह जघन्य होता है और अजघन्य भी। यदि अजघन्य होता है तो वह षट्स्थान पतित होता है। इसी प्रकार मान, माया और लोभकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिये। ४२५. तिर्यञ्चगतिमें सामान्य तिर्यञ्च,पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च और पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च पर्याप्त कोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभागविभक्तिबालेके सम्यक्त्व कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं होता। यदि होता है तो नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुए होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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