SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भा० २२] अणुभागविहत्तीए सण्णियासो २५३ जहण्णाणु विहत्ति० मिच्छत्त--सम्मत्त-सम्मामि०--बारसक०--णवणोक० णियमा अज० अणंतगुणब्भहिया । माण-माया-लोभाणं किं ज० किमज० १ तं तु छहाणपदिदा । एवं सेसतिण्हं कसायाणं । कोधसंजल. जहण्णाणु विहत्ति० तिएहं संजल० किं ज. अज० ? णि. अज० अणंतगुणब्भहिया। माणसंज० ज० विहत्ति० माया-लोभसंज०किं ज० अज० ? णियमा अज० अणंतगुणब्भहिया । कोधसंजलणादिहेडिमपयडीओ णत्थि। मायसंज. ज. विहत्ति० लोभसंजणियमा अज० अणंतगुणब्भहिया । लोभसंज. जहण्णाण सेसपयडीओ णत्थि । इत्थि. जहण्णाण. सत्तणोक०-चदुसंज० णियमा अज० अणंतगुणब्भहिया। एवं णqसयवेदस्स । पुरिस० जहएणाण विहत्ति० चदुसंज० णियमा अज० अणंतगुणब्भहिया । हस्स-जहएणाणु०वि० पुरिस०-चदुसंज० णि० अज० अणंतगुणब्भहिया। पंचणोक० णि. जहएणा। एवं पंचणोकसायाणं। ___४२३. आदेसेण णेरइएमु मिच्छत्त० जहएणाणु सम्मत्त० सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि णि. अज० अणंतगुणब्भहिया । अणंताणु चउक्क० णि. अज० अणंतगुणब्भहिया । बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० ? तं तु छहाणपदिदा। जघन्य अनुभागविभक्तिवालेके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषाय नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुए होती है। उसके अनन्तानुबन्धी मान, माया और लोभका क्या जघन्य अनुभाग होता है या अजघन्य अनुभाग होता है ? उनका जघन्य भी होता है और अजघन्य भी होता है। यदि अजघन्य होता है तो षट्स्थानपतित अनुभाग होता है। इसी प्रकार शेष तीन कषायोंकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिए। संज्वलन क्रोधकी जघन्य अनुभागविभक्तिवालेके मान, माया और लोभ संज्वलनका क्या जघन्य होता है या क्या अजघन्य होता है ? नियमसे अजघन्य अनुभाग होता है जो अनन्तगुणा अधिक होता है। मान संज्वलनकी जघन्य विभक्तिवालेके माया संज्वलन और लोभ संज्वलनका क्या जघन्य होता है या अजघन्य होता है ? नियमसे अनन्तगुणा अधिक अजघन्य होता है। नीचेकी क्रोध संज्वलन आदि प्रकृतियाँ उसके नहीं होती। माया संज्वलनकी जघन्य विभक्तिवालेके लोभ संज्वलन नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुए होता है। लोभ संज्वलनकी जघन्य अनुभागविभक्तित्रालेके शेष प्रकृतियाँ नहीं होती। स्त्रीवेदकी जघन्य अनुभागविभक्तिवाले के सात नोकषाय और चारों संज्वलन कषाय नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुए होती हैं। इसी प्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिए । पुरुषवेदकी जघन्य अनुभागविभक्तिवालेके चार संज्वलनकषाय नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुए होती हैं। हास्यकी जघन्य अनुभागविभक्तिवालेके पुरुष. वेद और चारों संज्वलन नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुए होती हैं। पांच नोकषाय नियमसे जघन्य होती हैं। इसी प्रकार शेष पांचों नोकषायोंकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिए। ४२३. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभागविभक्तिवालेके सम्यक्त्व कदाचित् होता है कदाचित् नहीं होता। यदि होता है तो नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुए होता है। अनन्तानुबन्धी चतुष्क नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुर होता है। बारह कषाय और नव नोकषायका क्या जघन्य होता है या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy