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________________ २५२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ सम्मत्त-सम्मामि०-सोलसक०-णवणोक० किमुक्क० अणुक्क०१ णियमा उक्कस्सविहतिओ। एवं सोलसकसाय--णवणोकसायाणं । सम्मच० उक्क० विहतिओ मिच्छ०--बारसक०णवणोक० किमुक्क० अणुक्क० १ तं तु अणंतगुणहीणा। अणंताणु०४ सिया अत्थि सिया पत्थि। जदि अत्थि तं तु अणंतगुणहीणा । सम्मामि० णियमा उक्कस्स विहतियो। एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि वरव्वं । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि ति। ..६४२२. जहण्णए पयदं। दुविहो जिद्द सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्तस्स जो जहणाणभागविहत्तिओ तस्स सम्मत्त--सम्मामिच्छत्ताणि सिया अस्थि सिया पत्थि । जदि अत्थि णियमा अजहण्णा अणंतगुणब्भहिया । अणंताणु० चउक०चदुसंज०-णवणोक० णियमा अज० अणंतगुणब्भहिया । अढक० णियमा तं तु छटाणपदिदा । एवं अटकसायाणं । सम्मत्त० जहण्णाणु विहत्ति० बारसक०--णवणोक० णियमा अज० अणंतगुणब्भहिया। सेसपयडीओ णत्थि । सम्मामि० जहण्णाणु विहत्ति० सम्मत्त०-बारसक० --णवणोक० णियमा अज० अणंतगुणब्भहिया । अणंताणु०कोष० wormerrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrn वाला सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नव नोकषायोंकी क्या उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है या अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है ? वह नियमसे उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है । इसी प्रकार सोलह कषाय और नव नोकषायोंकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिए । सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट विभक्तिवाला मिथ्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंकी क्या उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है या अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है ? वह उत्कृष्ट विभक्तिवाला भी होता है और अनुत्कृष्ट विभक्ति वाला भी होता है। यदि अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है तो वह अनन्तगुण हीन विभक्तिवाला होता है। उसके अनन्तानुबन्धीचतुष्क कदाचित् होता है कदाचित् नहीं होता। यदि होता है तो वह उत्कृष्ट भी होता है और अनुत्कृष्ट भी होता है। यदि अनुत्कृष्ट होता है तो वह अनन्तगुण हीन होता है। वह सम्यग्मिथ्यात्वकी नियमसे उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा भी कहना चाहिए। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त लेजाना चाहिए। . ४२२. अब जघन्य अवसरप्राप्त है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे जो मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभागविभक्तिवाला है उसके सम्यक्त्व और सभ्यग्मिथ्यात्व कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते। यदि होते हैं तो नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुए होते हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्क, चार संज्वलन और नव नोकषाय नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुए होते हैं। आठ कषाय नियमसे होती हैं किन्तु वे जघन्य भी होती हैं और अजघन्य भी होती हैं। यदि अजघन्य होती हैं तो नियमसे षट्स्थान पतित अनुभागको लिये हुए होती हैं । इसी प्रकार आठ कषायोंकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिए । सम्यक्त्वकी जघन्य अनुभागविभक्तिवालेके बारह कषाय और नव नोकषाय नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुए होती हैं । उसके शेष प्रकृतियां अर्थात् अनन्तानुबन्धी चतुष्क, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व ये प्रकृतियाँ नहीं होती। सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभागविभक्तिवाले के सम्यक्त्व, बारह कषाय और नव नोकषाय नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको लिये हुए होती हैं। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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