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गा० २२] अणुभागविहत्तीए सणियासो
२५१ त्ति । विदियादि जाव सत्तमि त्ति एवं चेव । एवं जोणिणी--पंचिंदियतिरिक्खअपज्जामणुसअपज्ज०-भवण-वाण-जोदिसिया त्ति । णवरि पंचिंदियतिरिक्व-मणुसअपज्ज० सम्मत्त०-सम्मामि० उक्कस्साणु विहत्ति० अणंताणु० चउक्क० बारसकसायभंगो।
६४२०. आणदादि जाव उवरिमगेवज्जा त्ति मिच्छत्त० उक्कस्साणुभागविहत्तिओ सम्मत्त--सम्मामि० सिया विहत्तिो सिया अविहत्तिओ । जदि विहतिओ णियमा उक्कस्सा। सोलसक०-णवणोक० किमुक्क० अणुक्क० १ णियमा उक्क० । एवं सोलसक०णवणोकसायाणं। सम्मत्त० उक्क० विहत्ति० मिच्छत्त-बारसक०--णवणोक० किमुक्क० अणुक्क० तं तु अणंतगुणहीणा। अणंताणु० चउक्क० सिया विहत्तिओ सिया अविहत्तिओ। जदि विहत्तिओ तं तु अणंतगुणहीणा। सम्मामि० णियमा उक्क० विहत्तिओ। एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि वत्तव्वं । णवरि सम्मत्तस्स सिया विहत्तियो सिया अविहत्तिो।' जदि विहत्तिो णियमा उक्कस्स विहत्तिओ।
४२१. अणुदिसादि जाव सव्वसिद्धि त्ति मिच्छत्त० उक्कस्साणुभागविहतिओ तिर्यञ्च पर्याप्त, सामान्य देव और सौधर्म स्वर्गसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातबीं पृथिवी तकके नारकियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए । इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें जानना चाहिए। इतना विशेष है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंके अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग बारह कषायोंके समान है।
४२०. आनत स्वर्गसे लेकर उपरिम अवेयक तकके देवोंमें जो मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाला है वह कदाचित् सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाला होता है और कदाचित् अविभक्तिवाला होता है। यदि विभक्तिवाला होता है तो नियमसे उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है। सोलह कषायों और नव नोकषायकी क्या उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है अथवा अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है ? नियमसे उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है। इसी प्रकार सोलह कषाय
और नव नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट विभक्तिवाला मिथ्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंकी क्या उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है या अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है ? वह उत्कृष्ट विभक्तिवाला भी होता है और अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला भी होता है यदि अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है तो वह अनन्तगुणी हीन विभक्तिवाला होता है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी कदाचित् विभक्तिवाला होता है और कदाचित् अविभक्तिवाला होता है। यदि विभक्तिवाला होता है तो उत्कृष्ट विभक्तिवाला भी होता है और अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला भी होता है। यदि अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है तो वह नियमसे अनन्तगुण हीन विभक्तिवाला होता है । तथा वह नियमसे सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट विभक्तिबाला होता है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा भी सन्निकर्ष कहना चाहिये। इतना विशेष है कि सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट विभक्तिवाला कदाचित् सम्यक्त्वकी विभक्तिबाला होता है और कदाचित् अविभक्तिवाला होता है यदि विभक्तिवाला होता है तो नियमसे उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है।
६ ४२१. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभाग विभक्ति
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