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________________ arrrrrrrrrrrr २५० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ तं तु छटाणपदिदो। अणंताणु० चउक्क० सिया विहत्तिओ सिया अविहत्तिओ। जदि विहत्तिओ तं तु छहाणपदिदो । एवं सम्मामिच्छत्तस्स । णवरि सम्मत्त० सिया विहत्तिओ सिया अविहत्तिओ। जदि विहत्तिओ णियमा उक्कस्सविहनिओ । एवं मणुसतियस्स वत्तव्वं । - ४१६. आदेसेण रइ एमु मिच्छत्त० उक्क० जो विहत्तिो सो सम्म०सम्मामि० सिया विहचिओ, सिया अविहत्तिओ । जदि विहत्तिओ णियमा उक्कस्सविहत्तिओ । सोलसक०-णवणोक० णियमा० तं तु छटाणपदिदो। एवं सोलसक०-णवणोकसायाणं । सम्मत्त० जो उक्क० विहत्तिओ सो सम्मामि० णियमा उक्क० विहत्तिो । मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० तं तु छहाणपदिदो । अणंताणु०चउक्क० सिया विहत्तिओ सिया अविहत्तिओ। तं तु छटाणपदिददो। एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि। णवरि सम्मत्तस्स सिया विहत्तिओ सिया अविहत्तियो । जदि विहत्तिओ णियमा उकस्सविहत्तिो । एवं पढमपुढवि-तिरिक्खतिय--देवोघं सोहम्मादि जाव सहस्सार होता है तो वह षट्स्थान पतित होता है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी कदाचित् विभक्तिवाला होता है और कदाचित् अविभक्तिवाला होता है यदि विभक्तिवाला होता है तो वह उत्कृष्ट भी होता है और अनुत्कृष्ट भी होता है। यदि अनुत्कृष्ट होता है तो वह षट्स्थान पतित होता है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा भी सन्निकर्ष जानना चाहिए । इतना विशेष है कि वह कदाचित् सम्यक्त्वकी विभक्तिवाला होता है और कदाचित् अविभक्तिवाला होता है। यदि विभक्तिवाला होता है तो नियमसे उत्कृष्टविभक्तिवाला होता है। इसी प्रकार सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंमे कहना चाहिये। १४१९. आदेशसे नारकियोंमे जो मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाला है वह कदाचित् सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुभागविभक्तिवाला होता है और कदाचित् अवि. भक्तिवाला होता है। यदि विभक्तिवाला होता है तो नियमसे उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है । वह सोलह कषाय और नव नोकषायों की नियमसे विभक्तिवाला होता है। किन्तु वह उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है, और अनुत्कृष्टविभक्तिवाला होता है। यदि अनुत्कृष्टविभक्तिवाला होता है तो वह षट्स्थान पतित होता है । इसी प्रकार सोलह कषाय और नव नोकषायोंकी अपेक्षा सन्निकर्ष होता है। जो सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट अनुभाग विभक्तिवाला है वह नियमसे सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है । वह मिथ्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंकी नियमसे विभक्तिवाला होता है। किन्तु वह उत्कृष्ट विभक्तिवाला भी होता है और अनुत्कृष्ठविभक्तिवाला भी होता है। यदि अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है तो वह षट्स्थान पतित होता है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी कदाचित् विभक्तिवाला होता है और कदाचित् अविभक्तिवाला होता है। यदि विभक्तिवाला होता है तो वह उत्कृष्ट विभक्तिवाला भी होता है और अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला भी होता है। यदि अनुत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है तो वह षट्स्थान पतित विभक्तिवाला होता है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा भी जानना चाहिए । इतना विशेष है कि सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट विभक्तिवाला कदाचित् सम्यक्त्वकी विभक्तिवाला होता है और कदाचित् अविभक्तिवाला होता है। यदि विभक्तिवाला होता है तो नियमसे उत्कृष्ट विभक्तिवाला होता है । इसी प्रकार पहली पृथिवी, सामान्य तियञ्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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