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________________ गा० २२] अणुभागबंधाहियारे कालो १८९ पलिदो ० असंखे ० भागेहि सादिरेयाणि वेदावहिसागरोवमाणि । अधवा तो मुहुत्ते सादिरेयाणित्ति केवि भणति । एदं सव्वं पि जाणिय वत्तव्वं । * अणुक्कस्स अणुभागसंतकमित्र केवचिरं कालादो होदि ? $ २८७, सुगमं । * जहष्णुक्कस्से अंतोमुहुत्त । २८८. दंसणमोहणीयं खवेंतेण अपुव्वकरणदाए पढमे अणुभागखंडए घादिदे सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमणुकस्समणुभागसंतकम्मं । तदो पहुडि अंतोमुहुत्तकालमणुक्कस्सं चेव अणुभागसंतकम्मं होदि जाव सम्मत्त - सम्मामिच्छत्ताणि णिल्लेविदाणि ति । $ २८६. संपहि उच्चारणमस्सिदृण कालानुगमं भणिस्सामो । कालाणुगमो दुविहो – जहण्णओ उक्कस्य चेदि । उक्कस्सए पयदं । दुविहो णिद्द सो - श्रघेण आदेसेण । ओघेण मिच्छत्त- सोलसक० - णवणोक० उक्क० अणुभाग० केवचिरं ? जहoणुक० तो ० | अणुक्क० ज० अंतोमु०, उक्क० अनंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । सम्पत्त - सम्मामि० उकस्साणु० ज० अंतोमु०, उक्क० वेळावहिसागरो० सादिरेयाणि । अणुक्क • जहण्णुक० अंतोमुहुत्तं । ० $ २६०. आदेसेण णेरइएसु छब्बीसं पयडीणं उक्क० ज० एगस०, उक्क० उद्वेलना कर देने पर पल्यके तीन असंख्यातवें भागों से अधिक दो छियासठ सागर प्रमाण उत्कृष्ट काल होता है । अथवा किन्हींका कहना है कि अन्तर्मुहूर्त अधिक दो छियासठ सागर उत्कृष्ट । इस सबको जानकर कथन करना चाहिये । काल * अनुत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका कितना काल है ? ९ २८७, यह सूत्र सुगम है । * जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । २८८. दर्शनमोहनीयका क्षपण करनेवाले जीवके द्वारा अपूर्वकरणके काल में प्रथम अनुभाग काण्डका घात कर देने पर सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अनुत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म होता । और तबसे लेकर सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका विनाश होने तक अन्तमुहूर्त कालपर्यन्त अनुत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म ही रहता है, अतः जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। २८९. अब उच्चारणावृत्तिका आश्रय लेकर कालानुगमको कहेंगे । कालानुगम दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट । प्रकृतमें उत्कृष्टसे प्रयोजन है । निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश | ओघसे मिध्यात्व, सोलह कषाय और नव नोकषायोंके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अनुत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल अनन्तकाल अर्थात् असंख्यात पुद् गल परावर्तनप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ अधिक दो छियासठ सागर प्रमाण है । अनुत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । $ २९०. आदेशसे नारकियोंमे छब्बीस प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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