SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ * इत्थिवेदस्स जहएणयमणुभागसंतकम्मं कस्स ? $ २५३. सुगमं । * खवयस्स चरिमसमयइत्थिवेदयस्स । $ २५४. जो इत्थिवेदोदएण खवगसेडिं चढिदो अंतरकरणं काऊण अंतोमुहुत्तकालेण पुरिसवेदम्मि संकामिदणqसयवेदो सवेददुचरिमसमयम्मि इत्थिवेदविदियहिदि धरेदूण उवरिमसमए कयणिस्संतो इत्थिवेदस्स उदयगदगोवुच्छावसेसो तस्स जहण्णयमणुभागसंतकम्मं । कदो ? देसघादिएगहाणियत्तादो। ण चेदमसिद्धं, अंतरकरणे कदे मोहणीयस्स एगहाणिो बंधो एगहाणिओ उदो ति मुत्तादो। तस्स सिद्धीए दुचरिमसमयसवेदम्मि जहएणसामित्तं किरण दिण्णं ? ण, तत्थ सव्वधादिदुहाणियअणुभागस्स जहएणत्तविरोहादो। ॐ पुरिसवेदस्स जहणणाणुभागसंतकम्मं कस्स ? स्थितिमें समय अधिक आवली शेष रहती है तो लोभ की तीसरी कृष्टिका सब द्रव्य सूक्ष्मकृष्टिमें संक्रान्त हो जाता है तथा द्वितीय संग्रहकृष्टिका उच्छिष्टावली तथा समय कम दो श्रावली मात्र नवक समयप्रबद्धको छोड़कर शेष द्रव्य सूक्ष्म कृष्टियोंमें संक्रान्त हो जाता है । तब जीव सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें आता है। वहाँ सूक्ष्मकृष्टि सम्बन्धी द्रव्य को अपकर्षण भागहारका भाग देकर एक भागकी गुणश्रेणि करता है। इसी प्रकार आगे भी जानना चाहिए। इस तरह करते करते जब सूक्ष्मसाम्परायका जितना काल शेष रहता है उतना ही लोभका स्थितिसत्त्व रहता है और वह प्रति समय अपवर्तनघातके द्वारा सूक्ष्मकृष्टिरूप अनुभागको प्राप्त होता है। उसके एक एक निषेक को एक एक समय भोगते भोगते जब वह जीव सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समयको प्राप्त होता है तब उसके संज्वलनलोभका जघन्य अनुभागसत्कर्म होता है। * स्त्रीवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? २५३. यह सूत्र सुगम है। * अन्तिम समयवर्ती क्षपक स्त्रीवेदी जीवके होता है । २५४. जो स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकोणि पर चढ़ा है और जिसने अन्तरकरण करके अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा पुरुषवेदमें नपुंसवेदका संक्रमण किया है तथा सवेद भागके उपान्त्य समय में स्त्रीवेदकी द्वितीय स्थितिको ग्रहण कर आगेके समयमें उसे निःसत्त्व कर दिया है और जिसके स्त्रीवेदका केवल उदय प्राप्त गोपुच्छ बाकी रहा है उसके स्त्रीवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म होता है, क्योंकि उसके देशघाती एकस्थानिक स्पर्धक होते हैं। और यह बात असिद्ध नहीं है, क्योंकि 'अन्तरकरण करने पर मोहनीयका एकस्थानिक बन्ध होता है और एकस्थानिक उदय होता है। इस सूत्रसे सिद्ध है। शंका-जब यह बात सिद्ध है तो सवेदभागके द्विचरम समयमें स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागका स्वामित्व क्यों नहीं दिया ? समाधान-नहीं, क्योंकि, द्विचरम समयमें सर्वघाती द्विस्थानिक अनुभागका सत्त्व है, अत: उसे जघन्य मानने में विरोध आता है। * पुरुषवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy