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________________ १६८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ 8 कोधसंजलणस्स जहएणयमणुभागसंतकम्मं कस्स ? २४८. सुगम । * खवगस्स चरिमसमयअसंकामयस्स । $ २४६. कोधोदएण खवगसेटिं चढिय अस्सकण्णकरणद्धाए अपुव्वफद्दयाणि करिय पुणो किट्टीकरणद्धाए पुव्वापुव्वप्फद्दयाणि बारहसंगहकिट्टीओ काऊण पच्छा कोधपढम--विदिय-तदियकिट्टीओ वेदयमाणो समयं पडि अंतोमुहुत्तकालं बंध-संताणुभागाणमणंतगुणहाणि कादूण तदो तदियकिट्टिवेदयचरिमसमए जं बद्धमणुभागसंतकम्म तं समयणदोआवलियमेतद्धाणमुवरि गंतूण चरिमसमयपबद्धस्स चरिमाणुभागफालि धरेदण हिदखवगो चरिमसमयअसंकामओ णाम तस्स जहएणयमणुभागसंतकम्मं । परोदएण खवगसेढिं चडिदस्स जहएणमणुभागसंतकम्म ण होदि, तत्थ चरिमाणुभागफालीए सव्वघादिफद्दयभावेण किट्टीहिंतो अणंतगुणाए जहण्णत्तविरोहादो। सुत्तम्मि सोदएण खवगसेढिं चडिदस्से ति [ किं] ण वुत्तमिदि णासंकणिज्ज, चरिमसमयहो जायेंगे तो उत्तर दिया गया कि शेष कषायोंका जो अनुभाग अनन्तानबन्धीरूप संक्रमण करता है उसका परिणमन बँधनेवाले अनुभागके अनुरूप ही होजाता है अर्थात् संक्रान्त अनुभाग उतना ही हो जाता है जितना बद्ध अनुभाग होता है, अत: अनुभाग बढ़ नहीं पाता। किन्तु बात ऐसी नहीं है, क्योंकि सत्ताके प्रकरणमें बन्धकी मुख्यता नहीं हो सकती। यथार्थमें तो जो अन्य कषायोंके परमाणु अनन्तानुबन्धीरूप संक्रान्त होते हैं उनमें जो अनुभाग होता है उसीकी मुख्यता है, किन्तु उसका अनुभाग उतना ही रहता है जितना उस समयमें बंधनेवाले परमाणुओंमें होता है, अतः अनुभागबन्धको लक्ष्यमें रखकर शंका-समाधान करना पड़ा है। * क्रोधसंज्वलनका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? २४८. यह सूत्र सुगम है। * अन्तिम समयवर्ती असंक्रामक तपकके होता है। $ २४९क्रोधके उदयसे क्षपकश्रेणि चढ़कर, अश्वकर्णकरणके कालमें अपूर्वस्पर्धकोंको करके पुनः कृष्टिकरणके कालमें पूर्वस्पर्धक और अपूर्वस्पर्धकोंकी बारह संग्रह कृष्टियाँ करके पश्चात् क्रोध की पहली, दूसरी और तीसरी कृष्टियोंका वेदन करता हुआ जीव प्रति समय अन्तर्मुहूर्त काल तक अनुभागबन्ध और अनुभागसत्त्व की अनन्तगुणी हानि करनेके पश्चात् तीसरी कृष्टिका वेदन करनेके अन्तिम समयमें जो बाँधा हुआ अनुभागसत्कर्म है उससे एक समयकम दो आवलीमात्र काल जाकर अन्तिम समयप्रबद्ध की अन्तिम अनुभागफाली को ग्रहण कर स्थित है उस क्षपक को अन्तिम समयवर्ती असंक्रामक कहते हैं। उसके क्रोध संज्वलनका जघन्य अनुभागसत्कर्म होता है। जो क्रोधके सिवा किसी अन्य कषायके उदयसे क्षपकश्रेणी पर चढ़ता है उसके क्रोध संज्वलनका जघन्य अनभागसत्कर्म नहीं होता, क्योंकि उसकी अन्तिम अनुभागफालीमें सर्वघातिस्पर्धक होनेसे वह कृष्टियों की अपेक्षा अनन्तगुणी होती है, अतः उसके जघन्य होनेमें विरोध आता है। .... शंका-चूर्णिसूत्रमें 'स्वोदयसे क्षपकोणि पर चढ़नेवालेके' ऐसा क्यों नहीं कहा ? समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि 'चरम समयवर्ती असंक्रामकके' इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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