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________________ अनुभागवाले जीव सर्वदा पाये जाते हैं। सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागवालोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि इसके अन्तिम काण्डकके पतनमें अन्तर्मुहूर्त काल लगता है और अजघन्य अनुभागवालोंका सर्वदा काल है, क्योंकि इसके इस अनुभागवाले जीव सर्वदा पाये जाते हैं। छह नोकषायोंके जवन्य और अजवन्य अनुभागवालोंका काल सम्यग्मिथ्यात्वके समान ही है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागवालोंका जघन्य काल एक समय है, क्योंकि इनकी संयोजनाके प्रथम समयमें ही इनका जवन्य अनुभाग प्राप्त होता है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि निरन्तर यदि नाना जीव इनके जवन्य अनुभागको प्राप्त होते हैं तो इतने काल तक ही प्राप्त होते हैं । तथा इनके अजवन्य अनुभागवालोंका काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है । नाना जीवोंकी अपेक्षा मार्गणाओंमें भी इसी प्रकार काल अपने अपने स्वामित्वके अनुसार घटित कर लेना चाहिए। अन्तर-मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागवालोंका जघन्य अन्तर एक समय है, क्योंकि नाना जीवोंकी अपेक्षा एक समयके अन्तरसे उत्कृष्ट अनुभागकी प्राति सम्भव है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है. क्योंकि कोई भी जीव इतने काल तक उत्कृष्ट अनुभागको न प्राप्त हो यह सम्भव है। अनुत्कृष्ट अनुभागका अन्तर काल नहीं है, क्योंकि इस अनुभागके साथ जीव सदा उपलब्ध होते रहते हैं। मोहनीयकी छब्बीस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागवाले जीवोंका इसी प्रकार अन्तरकाल जानना चाहिए। किन्तु सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागवाले जीवोंका अन्तरकाल नहीं उपलब्ध होता. क्योंकि इन प्रकृतियोंकी क्षपणाके सिवा अन्यत्र इनका उत्कृष्ट अनुभाग ही उपलब्ध होता है। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागवालोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है, क्योंकि इनकी कमसे कम एक समयके अन्तरसे और अधिकले अधिक छह महीनाके अन्तरसे क्षपणा सम्भव है । जघन्यकी अपेक्षा मोहनीयके जवन्य अनुभागवालोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महोना है, क्योंकि कमसे कम एक समयके अन्तरसे और अधिकसे अधिक छह महीनाके अन्तरसे आपकोणिकी प्राप्ति सम्भव है। मोहनीयके अजघन्य अनुभागवालोंका अन्तर नहीं होता, क्योंकि अजघन्य अनुभागवाले जीव सदा पाये जाते हैं । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, लोभसंज्वलन और छह नोकषायोंके जघन्य और अजघन्य अनुभानवालोंका इसी प्रकार अन्तर काल जानना चाहिए। मिथ्यात्व और आठ कपायोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागवाले जीवोंका अन्तरकाल नहीं है, क्योंकि इनके दोनों प्रकारके अनुभागवाले जीव सदा उपलब्ध होते रहते हैं । अनन्तानुवन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागवालोंका जघन्य अन्तर एक समय है, क्योंकि जिन्होंने अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना की है ऐसे नाना जीव एक समयके अन्तरसे उससे पुनः संयुक्त हों यह सम्भव है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है, क्योंकि अनन्तानुबन्धीकी संयोजनाके कारणभूत परिणाम असंख्यात लोकप्रमाण हैं, इसलिए यह सम्भव है कि जिस परिणामसे जघन्य अनुभाग प्राप्त होता है वह इतने काल बाद होवे । अनन्तानुबन्धीके अजधन्य अनुभागवाले जीवोंका अन्तरकाल नहीं है, क्योंकि इसके अजघन्य अनुभागवाले जीव सदा पाये जाते हैं । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है, क्योंकि इन वेदवाले जीवोंका एक समयके अन्तरसे भी आपकोणि पर आरोहण करना सम्भव है और वर्षपृथक्त्वके अन्तरसे भी क्षपकोणी पर प्रारोहण करना सम्भव है। इनके अजघन्य अनुभागवाले जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। कारण स्पष्ट है। तीन संज्वलन और पुरुषवेदके जवन्य अनुभागवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष है, क्योंकि इन प्रकृतियोंके उदयसे एक समयके अन्तरसे भी जीव क्षपकश्रोणि पर प्रारोहण कर सकते हैं और अधिकसे अधिक साधिक एक वर्षके अन्तरसे श्रारोहण करते हैं। इनके अजघन्य अनुभागवाले जीवोंका अन्तरकाल नहीं है यह स्पष्ट ही है। गति अादि मार्गणाओंमें अपने अपने स्वामित्वको जानकर यह अन्तर काल घटित कर लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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