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( १३ ) अनुभागविभक्तिवालोंका क्षेत्र सर्व लोक है । अनन्तानुबन्धीचतुष्क, चार संज्वलन और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा इसी प्रकार क्षेत्र जानना चाहिए। मिध्यात्व और पाठ कषायवालोंमें जघन्य और अजघन्य अनुभागवालोंका सर्व लोक क्षेत्र है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्यिथ्यात्ववालोंमें जघन्य और अजघन्य दोनों अनुभागवालोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सर्वत्र कारण स्पष्ट है। मार्गणाओं में भी इसी प्रकार क्षेत्र ले आना चाहिए।
स्पर्शन--मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागवालोंने वर्तमानकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागका, विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछकम आठ भागका और मारणान्तिक तथा उपपादपदकी अपेक्षा सर्वलोकका स्पर्शन किया है। तथा अनुत्कृष्ट अनुभागवालोंने सर्व लोकका स्पर्शन किया है । मोहनीयकी छब्बीस उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा इसी प्रकार स्पर्शन जानना चा और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागवालोंका भी मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागवालोंके समान स्पर्शन बन जाता है पर अनुत्कृष्ट अनुभागवालोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण हो प्राप्त होता है, क्योंकि क्षायिक सम्यक्त्वकी प्राप्तिके समय ही यह अनुभाग सम्भव है। जयन्यकी अपेक्षा मोहनीयका जघन्य अनुभाग क्षपकणिमें होता है, इसलिए उससे युक्त जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और अजघन्य अनुभागवालोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है, क्योंकि ये सर्व लोकमें पाये जाते हैं। चार संज्वलन और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा इसी प्रकार स्पर्शन है । कारण पूर्वोक्त ही है। मिथ्यात्व और पाठ कषायोंके जवन्य और अजघन्य अनुभागवालोंने सर्व लोकका स्पर्शन किया है। कारण सुगम है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागवालोंने लोकके असंख्यातवें भागका स्पर्शन किया है, क्योंकि क्षायिकसम्यग्दर्शनकी प्राप्तिके समय यह अनुभाग होता है। इनके अजघन्य अनुभागवालोंने वर्तमान कालको अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागका, विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछकम आठ भागका तथा मारणान्तिक और उपपादपदकी अपेक्षा सर्व लोकका स्पर्शन किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागवालोंने वर्तमान कालको अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागका और विहारवत्स्वस्थानको अपेक्षा सनालीके चौदह भागों में से कुछकम पाठ भागका स्पर्शन किया है। तथा अजघन्य अनुभागवालोंने सर्व लोकका स्पर्शन किया है। मार्गणाओंमें भी इसी प्रकार अपनी अपनी विशेषताको जानकर स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए।
काल - मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागवालोंका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है, क्योंकि नाना जीव अन्तमुहूर्त काल तक उत्कृष्ट अनुभागके साथ रहें और उसके बाद अन्तर पड़ जाय यह सम्भब है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि निरन्तर यदि नाना जीव उत्कृष्ट अनुभागको प्रात होते रहे तो इतने काल तक ही वे उत्कृष्ट अनुभागको प्राप्त होते हैं। उसके बाद उत्कृष्ट अनुभागवालोंका नियमसे
र हो जाता है। मोहनीयके अनत्क्रष्ट अनभागवालोंका सर्वदा काल है यह स्पष्ट ही है। मोहनीयकी छब्बीस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागवालोंका भी यही काल जानना चाहिए । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागवालोंका सर्वदा काल है, क्योंकि ये जीव सर्वदा पाये जाते हैं। तथा अनुत्कृष्ट अनुभागवालोंका अन्तमुहर्त काल है, क्योंकि अनुत्कृष्ट अनुभागकी प्राप्ति क्षायिक सम्यक्त्वकी प्राप्तिके समय ही सम्भव है । मोहनीयके जघन्य अनुभागवालोंका जघन्य काल एक समय है, क्योंकि यह सम्भव है कि नाना जीव एक साथ आपकणिमें इसके जघन्य अनुभागको प्राप्त हों और बादमें अन्तर पड़ जाय तथा उत्कृष्ट काल संख्यात समय है, क्योंकि लगातार नाना जीव यदि मोहनीयके जघन्य अनुभागको प्राप्त होते हैं तो संख्यात समय तक ही प्राप्त हो सकते हैं। कारण स्पष्ट है। मोहनीयके अजघन्य अनुभागवालोंका काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है। सम्यक्त्व, चार संज्वलन और तीन वेदोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागवालोंका इसी प्रकार काल ले आना चाहिए। मिथ्यात्व और पाठ कषायोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागवालोंका काल सर्वदा है, क्योंकि इन प्रकृतियोंके उक्त
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