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________________ गा० २२ ] अणुभागविहत्तीए भुजगारे भागाभागाणुगमो १०१ $ १५२. भागाभागाणु० दुविहो णिद्दे सो-ओघेण आदेसेण । ओघे० मोह० भुज० सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? संखे०भागो। अप्पदर० केव० ? असंखे०भागो। अवहि० केव० ? संखेज्जा भागा। एवमसंखे०--अणंतजीवरासीणं वत्तव्वं । मणुसपज्ज०-मणुसिणी. भुज०--अप्पदर० सव्वजीव० केव० ? संखे० भागो। अवहि. संखेज्जा भागा। आणदादि जाव अवराइद त्ति अप्पदर० सव्वजी० केव० ? असंखे०भागो । अवहि. असंखेज्जा भागा। सव्वदृसिद्धिदेवेसु अप्पदर० सव्वजीव० केव० ? एक जीव और अवस्थितवाला एक जीव होता है। १० कदाचित् भुजगारवाला एक जीव और अवस्थितवाले अनेक जीव होते हैं। ११ कदाचित् भुजगारवाले अनेक जीव और अल्पतरवाला एक जीव होता है। १२ कदाचित् भुजगारवाले अनेक जीव और अल्पतरवाले अनेक जीव होते हैं । १३ कदाचित् भुजगारवाले अनेक जीव और अवस्थितवाला एक जीव होता है। १४ कदाचित् भुजगारवाले अनेक जीव और अवस्थितवाले अनेक जीव होते हैं। १५ कदाचित् अल्पतर वाला एक जीव और अवस्थितवाला एक जीव होता है। १६ कदाचित् अल्पतरवाला एक जीव और अवस्थितवाले अनेक जीव होते हैं । १७ कदाचित् अल्पतरवाले अनेक जीव और अवस्थित वाला एक जीव होता है। १८ कदाचित् अल्पतरवाले अनेक जीव और अवस्थितवाले अनेक जीव होते हैं। १९ कदाचित् भुजगारवाला एक जीव, अल्पतरवाला एक जीव और अवस्थितवाला एक जीव होता है। २० कदाचित् भुजगारवाला एक जीव, अल्पतरवाला एक जीव और ले अनेक जीव होते हैं। २१ कदाचित भजगारवाला एक जीव, अल्पतरवाले अनेक जीव और अवस्थितवाला एक जीव होता है । २२ कदाचित् भुजगारवाला एक जीव, अल्पतरवाले अनेक जीव और अवस्थितवाले अनेक जीव होते हैं । २३ कदाचित् भुजगारवाले अनेक जीव, अल्पतरव क जीव और अवस्थितवाला एक जीव होता है। २४ कदाचित भजगारवाले अनेक जीव अल्पतरवाला एक जीव और अवस्थितवाले अनेक जीव होते हैं। २५ कदाचित् भुजगारवाले अनेक जीव, अल्पतरवाले अनेक जीव और अवस्थितवाला एक जीव होता है। २६ कदाचित् भुजगारवाले अनेक जीव, अल्पतरवाले अनेक जीव और अवस्थितवाले अनेक जीव होते हैं। आनतसे लेकर सर्वार्थसिद्धिपर्यन्त अवस्थितविभक्तिवाले जीव नियमसे पाये जाते हैं। अतः यह एक ध्रुव भंग होता है और अल्पतरको लेकर दो अध्रुव भंग होते हैं। इस प्रकार तीन भंग होते हैं। यहाँ चार गतियोंकी अपेक्षा ही भङ्गविचयका विचार किया है। शेष मार्गणाओंमें इसे ध्यानमें रखकर जान लेना चाहिए। __ इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचयानुगम समाप्त हुआ। १५२. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकर्मकी भुजगारविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। अल्पतरविभक्तिवाले जीव सब जीवों के कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। अवस्थितविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। इसी प्रकार असंख्यात और अनन्त जीवराशियोंका कथन करना चाहिये। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें भुजगार और अल्पतरविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। अवस्थितविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके संख्यात बहुभाग हैं। आनत स्वर्गसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें अल्पतरविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। अवस्थितविभक्तिवाल जीव सब जीवोंके असंख्यात बहुभाग हैं। सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें अल्पतरविभक्तिवाले अवस्थि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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