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________________ - जयधवलासहिदे कसायपाहुडे - [अणुभागविहत्ती ४ आदेसेण णेरइएमु मोह० भुज०-अवहि० णियमा अत्थि । अप्पदर० भजिदव्वा । सिया एदे च अप्पदरविहत्तिो च १ । सिया एदे च अप्पदरविहत्तिया च २ । धुवे पक्खित्ते तिण्णि भंगा ३ । एवं सव्वणेरइय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुस-देव-भवणादि जाव सहस्सारो त्ति । मणुसअपज्ज० मोह० सव्वपदा भयणिज्जा । भंगा छव्वीस २६ । आणदादि जाव सव्वदृसिद्धि त्ति मोह० अवहि० णियमा अस्थि । अप्पदर० भजियव्वा । सिया एदे च अप्पदरविहत्तिो च १। सिया एदे च अप्पदरविहत्तिया च २। एत्थ धुवे पक्खिते तिण्णि भंगा ३ । एवं जाणिदूणे णेदव्वं जाव अणाहारि ति । ___ एवं णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमो समत्तो । नियमसे हैं। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी भुजगार और अवस्थितविभक्तिवाले जीव नियमसे है। अल्पतरविभक्तिवाले जीव भजनीय हैं। कदाचित इन विभक्तिवालोंके साथ एक अल्पतरविभक्तिवाला जीव होता है। कदाचित् इन विभक्तिवालोंके साथ अनेक अल्पतरविभक्तिवाले जीव होते हैं। इस प्रकार इन दोनों भंगोंमें एक ध्रव भंगके मिलानेसे तीन भंग होते हैं। इस प्रकार सब नारकी, सब पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च, सब मनुष्य, सामान्य देव और भवनवासीसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तकके देवोंमें जानना चाहिए। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मोहनीयके सब पद भजनीय हैं। भङ्ग छब्बीस होते हैं। श्रानतसे लेकर सवार्थसिद्धिपर्यन्त मोहनीयकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव नियमसे होते है। अल्पतरविभक्तिवाले जीव भजनीय हैं। कदाचित् इस विभक्तिवालोंके साथ एक अल्पतरविभक्तिवाला जीव हाता है १ । कदाचित् इस विभक्तिवालोंके साथ अनेक अल्पतरविभक्तिवाले जीव होते हैं २। इस प्रकार इन दोनों भङ्गोंमें ध्रुव भङ्गके मिलानेसे तीन भङ्ग होते हैं ३ । इस प्रकार भङ्गविचयको जानकर उसे अनाहारकमार्गणा पर्यन्त ले जाना चाहिये। विशेषार्थ-अोघसे तीनों ही विभक्तिवाले जीव नियमसे पाये जाते हैं, उनका कभी अभाव नहीं होता। आदेशसे नारकियोंमें भुजगार और अवस्थितविभक्तिवाले तो नियमसे पाये जाते हैं और अल्पतरविभक्तिवाले विकल्पसे पाये जाते हैं। अत: तीन भंग होते हैं-भुजगार और अवस्थितविभक्तिवाले जीव नियमसे होते हैं, यह एक ध्रुव भंग है तथा दो अध्रुव भंग हैं-- कदाचित् भुजगार और अवस्थितविभक्तिवालोंके साथ एक अल्पतरविभक्तिवाला जीव पाया जाता है और कदाचित् इन दोनों विभक्तिवालोंके साथ अल्पतरविभक्तिवाले अनेक जीव पाये जाते हैं । सब नारकियों, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों, सब मनुष्यों, सामान्य देवों और भवनवासीसे लेकर सहस्रारपर्यन्त तकके देवोंमें तीन भंग होते हैं। किन्तु मनुष्य अपर्याप्तक सान्तर मार्गणा है, अत: उसमें सभी पद विकल्पसे होते हैं और भंग छब्बीस होते हैं-१ कदाचित् भुजगारविभक्तिवाला एक जीव होता है । २ कदाचित् भुजगारविभक्तिवाले अनेक जीव होते हैं। ३ कदाचित् अल्पतर विभक्तिवाला एक जीव होता है। ४ कदाचित् अल्पतरविभक्तिवाले अनेक जीव होते हैं । ५ कदाचित् अवस्थितविभक्तिवाला एक जीव होता है। ६ कदाचित् अवस्थितविभक्तिवाले अनेक जीव होते हैं। ७ कदाचित् भुजगारवाला एक जीव और अल्पतरवाला एक जीव होता है। ८ कदाचित् भुजगारवाला एक जीव और अल्पतरवाले अनेक जीव होते हैं । ९ कदाचित् भुजगारवाला ...... आ. प्रतौ अवट्टि रिणयमा अस्थि, सिया इति पाठः। २. ता. प्रतौ एवं सचणेरइयसव्व जाणिदूण इति पाठः । Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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