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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ मेत्तो, उकस्सेण अट्ठसमयमेतो । कुदो ? एगपरिणामप्पणादो । एगद्विदीए सम्बढिदिवंधज्झवसाणट्ठाणेसु अवठ्ठाणकालो पुण जहण्णेण एगसमयमेत्तो, उक्क० अंतोमुहुत्तं । पुणो विसमय-तिसमयादिपाओग्गेहि द्विदिबंधज्झक्साणट्ठाणेहि णिरुद्धगहिदि बंधमाणेण तद्विदि. बंधकाले समत्ते संकिलेसक्खयाभावादो तिस्से द्विदिबंधज्झवसाणहाणेहि समयुत्तरादिकमेण पलिदो० असंखे०भागमेत्तहिदिवियप्पेसु उवरि चडिद्ण बद्धेसु अद्धाक्खएण एगो भुजगारसमओ लद्धो होदि । पुणो चरिमसमए एगहिदिबंधपाओग्गद्विदिबंधज्झवसाणहाणेसु अवट्ठाणकालो समत्तो । तस्स समत्तीए संकिलेसक्खओ णाम ।
३३. एवंत्रिहेण संकिलोसक्खएण उवरि समयुत्तर-दुसमयुत्तरादिकमेण जाव संखेजसागरोवममेत्तहिदीणं द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि समयाविरोहेण परिणामिय' बंधमाणस्स संकिलेसक्खएण भुजगारस्स विदियो समयो। तदिर समए कालं कादृण विग्गहगदीए पंचिदिएसुप्पण्णपढमसमए असण्णिहिदि बंधमाणस्स एइंदियस्स तदियो भुजगारसमयो । चउत्थसमए सरीरं घेत्तण अंतोकोडाकोडिद्विदि बंधमाणस्स चउत्थो भुजगारसमओ । एवं मिच्छत्तभुजगारस्स चत्तारि चेव समया । जत्थ जत्थ भुजगारो वुच्चदि तत्थ तत्थ एत्थ परूविदअत्थो परवेयव्यो। 23 अप्पदरकम्मसिनो केवचिरं कालादो होदि ?
३४. सुगममेदं। आठ समय प्रमाण है, क्योंकि यहाँ एक परिणामकी मुख्यता है। परन्तु सब स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंमें एक स्थितिका अवस्थानकाल जघन्यसे एक समय और उत्कृष्टरूपसे अन्तमुहूर्त होता है । पुनः दो समय और तीन समय आदिके योग्य स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंके द्वारा विवक्षित एक स्थितिको बांधनेवाले जीवके यद्यपि उस स्थितिबन्धका काल समाप्त हो जाता है तो भी संक्लेशका क्षय न होनेसे उस स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंके द्वारा एक समय अधिक आदिके क्रमसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिविकल्पोंके ऊपर जाकर बन्ध होनेपर अद्धाक्षयसे एक भुजगारसमय प्राप्त होता है। पुनः अन्तिम समयमें एक स्थितिबन्धके योग्य स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंमें रहनेका काल समाप्त होता है। उसकी समाप्तिको संक्लेशक्षय कहते हैं।
६३३. इस प्रकारके संक्लेशक्षयके द्वारा ऊपर एक समय अधिक और दो समय अधिक आदिके क्रमसे संख्यात हजार सागरप्रमाण स्थितियोंके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंको यथाविधि परणमाकर बन्ध करनेवाले जीवके संक्लेशक्षयसे भुजगारका दूसरासमय होता है। तीसरे समयमें जो एकेन्द्रिय मरकर विग्रहगतिसे पंचेन्द्रियों में उत्पन्न हुआ है वह वहाँ उत्पन्न होनेके पहले समयमें असंज्ञीकी स्थितिका बन्ध करता है तब इसके तीसरा भुजगार समय होता है। तथा चोये समयमें शरीरको ग्रहण करके अन्तःकोड़ाकोड़ीप्रमाण स्थितिका बन्ध करनेवाले उस जीवके चौथा भुजगार समय होता है : इस प्रकार मिथ्यात्वसम्बन्धी भुजगारके चार ही समय होते हैं। आगे जहाँ जहाँ भुजगारका कथन किया जाय वहाँ वहाँ यहाँ पर कहे गये अर्थकी प्ररूपणा करनी चाहिये ।
मिथ्यात्वके अल्पतरस्थितिसत्कर्मवाले जीवका कितना काल है ? ६ ३४. यह सूत्र सुगम है। आ. प्रतौ परिणमिय इति पाठः ।
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