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गा० २२] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिभुजगारसामित्तं उवरिमाओ। समयुत्तरधुवद्विदीर पढमखंडपरिणामेहि संखाए धुवद्विदिविदियखंड. समाणेहि धुवहिदी समयुत्तरधुवट्टिदी वा बज्झइ, ण उवरिमाओ। विदियखंडपरिणामेहि धुवटिदितदियखंडसमाणेहि धुवहिदी समयुत्तरधुव द्विदी दुसमयुत्तरधुवहिदी च बज्झइ, ण उवरिमाओ। एवं दव्वं जाव दुचरिमखंडं ति। पुणो चरिमखंडझवसाणहाणहि समयाहियधुवटिदिप्प हुडि परिणामखंडभागहारमेत्तद्विदीओ उवरिमाओ बंधति ण धुवहिदी, धुवटिदिपरिणामेहि चरिमखंडपरिणामाणं सरिसत्तामावादो। एवं जाणिदण णेदव्वं जाव अणुक्कस्सुक्कस्सट्ठिदि त्ति ।
३१. उकस्सहिदीए पढमखंडपरिणामेहि उक्कस्सटिदिप्पडुडि हेट्ठा परिणामखंडभागहारमत्तद्विदीओ बझंति । विदियखंडपरिणामेहि रूवृणपरिणामखंडसलागमेतद्विदीओ हेट्ठिमाओ बझंति । तदियखंडपरिणामेहि दुरूवणपरिणामखंडसलागामेत्तहिदीओ हेडिमाओ बझंति । एवं गंतूणुकस्सहिदीए चरिमखंडपरिणामेहि उक्कस्सद्विदी एक्का चेव बज्झइ । कुदो, तक्खंडपरिणामाणं हेट्ठिमखंडेहि अणुकट्टीए अमावादो। जेणेगद्विदिपरिणामा उवरि पलिदोवमस्स असंखे०मागमेत्ताणं चेव द्विदीणं बंधकारणं होति, तेण अद्धाक्खएण सुट्ट महंतो वि द्विदिवंधभुजगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो चेवे त्ति घेत्तव्यो।
६३२. संपहि एदेसिं विदिबंधज्झवसाणषट्ठाणाणं परिणामकालो जहण्णेण एगसमयहै, इनसे और ऊपरकी स्थितियोंका नहीं । एक समय अधिक ध्रुवस्थितिके पहले खंडके परिमाणोंसे, जो कि संख्यामें ध्रुवस्थितिके दूसरे खंडके समान है, ध्रुवस्थितिका या एक समय अधिक ध्रुवस्थितिका बन्ध होता है ऊपरकी स्थितियोंका नहीं। ध्रुवस्थितिके तीसरे खण्डके समान दूसरे खण्डके परिणामोंसे ध्रवस्थितिका,एक समय अधिक ध्रुवस्थितिका और दो समय अधिक ध्रुवस्थितिका बन्ध होता है, ऊपरकी स्थितियोंका नहीं । इसी प्रकार द्विचरमखण्डतक ले जाना चाहिये। पुनः अन्तिम खण्डके अध्यवसानस्थानोंसे एक समय अधिक ध्रुवस्थितिसे लेकर परिणामोंके खण्ड करनेके लिये जो भागहार कहा है तत्प्रमाण ऊपरकी स्थितियोंका बन्ध होता है ध्रुवस्थितिका नहीं क्योंकि ध्रवस्थितिके परिणामोंके साथ अन्तिम खण्डके परिणामोंकी समानता नहीं है। इसी प्रकार जानकर अनुत्कृष्ट-उत्कृष्ट स्थितिके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिये। अर्थात् जिन परिणामोंसे जिन स्थिति खण्डोंका बन्ध हो उसका विचार कर कथन करना चाहिए।
६३१. उत्कृष्ट स्थितिके प्रथम खण्डके परिणामोंसे उत्कृष्ट स्थितिसे लेकरापरिणामखण्ढोंकेभागहार प्रमाण नीचेकी स्थितियाँ बंधती हैं। दूसरे खण्ड के परिणामोंसे एक कम परिणामखण्डोंकी शलाकाप्रमाण नोचेकी स्थितियाँ बंधती हैं। तीसरे खण्डके परिणामोंसे दो कम परिणामखण्डोंकी शलाकाप्रमाण नीचेकी स्थितियाँ बंधती हैं इस प्रकार जाकर उत्कृष्ट स्थितिके अन्तिम खण्डके परिणामोंसे एक उत्कृष्ट स्थिति ही बंधती है, क्योंकि अन्तिम खण्डके परिणामोंकी नीचेके खण्डोंके साथ अनुकृष्टि नहीं पाई जाती है। चूकि एक स्थितिके परिणाम ऊपर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिके ही बन्धके कारण होते हैं, अतः अद्धाक्षयके द्वारा खूब बढ़ाकर भी यदि भुजगार स्थितिबन्ध हो तो वह पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हो बड़ा होगा ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये। ६३२. इन स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंका जघन्य परिणामकाल एक समय और उत्कृष्ट १ मा०प्रतौ साणाणं हाणाणं इति पाठः ।
maarnamurn
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