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________________ ३१५ गा० २२] द्विदिविहत्तीए वड्ढीए अप्पाबहुअं रासीए पहाणत्ते संते संखे गुणा असंखे०गुणा वा, दोण्हमेगदरणिण्णयाभावादो । संखे०भागहाणिक० संखे०गुणा । असंखे०भागहाणिक० असंखे०गुणा । सम्मत्तसम्मामि० सव्वत्थोवा असंखे गुणहाणिक० । संखेजगुणहाणिक० असंखे०गुणा । संखे०भागहाणिक० संखे०गुणा। असंखे०भागहाणिक० असंखेजगुणा । एवमोहिदंस०सम्मादिट्ठीणं । मणपज्जवणाणीसु अट्ठावीसं पयडीणं सव्वत्थोवा असंखे०गुणहाणि । संखे०गुणहाणि० संखे०गुणा । संखे०भागहा० संखे गुणा । असंखे०भागहा० संखे०गुणा । एवं संजद-सामाइय-छेदो०संजदाणं । ६६०२. संजमाणुवादेण परिहार० दसणतिय०-अणंताणु०चउक्क० सव्वत्थोवा असंखे गुणहाणिक । संखे०गुणहाणिक० संखेजगुणा । संखे०भागहा० संखे०गुणा । असंखे०भागहाणिक० संखे०गुणा। एकवीसपयडीणं सव्वत्थोवा संखे०भागहाणि । असंखे०भागहा० संखे०गुणा । सुहुमसांपराइय० लोभसंजल० सव्वत्थोवा संखे०गुणहाणि । संखे०भागहाणिक० संखे०गुणा । असंखे०भागहा० संखेगुणा । सेसपयडीणं णत्थि अप्पाबहुअं। णवरि दंसणतियस्स सव्वत्थोवा संखे०भागहाणि । असंखे०भागहा० संखे गुणा । संजदासंजद० देसणतियस्स सव्वत्थोवा असंखे०गुणहाणिकम्मंसिया । संख्यातगुणे हैं या असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि दोनोंमेंसे किसी एकका निर्णय नहीं किया जा सकता। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा असंख्यातगणहानिकर्मवाल जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगणहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे है। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इससे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे है। इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । मनःपर्ययज्ञानियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे है। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे है। इसी प्रकार संयत सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासयत जीवोंके जानना चाहिये।। ६०२. सयम मार्गणाके अनुवादसे परिहारविशुद्धिसयतोंमें तीन दर्शनमोहनीय और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा असख्यातगणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े है। इनसे सख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सख्यातगणे हैं । इनसे सख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे है। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव सख्यातगुणे है। इक्कीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा सख्यातभागहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे असख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे है । सूक्ष्मसांपरायिकसंयतोंमें लोभसंज्वलनकी अपेक्षा संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे सख्यातभागहानिकर्मवाले जीव सत्यातगुणे हैं । इनसे असख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे है। यहाँ शेष प्रकृतियोंका अल्पबहुत्व नहीं है। किन्तु इतनी विशेषता है कि तीन दर्शनमोहनीयकी अपेक्षा सख्यातभागहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े है। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव सख्यातगुणे है। सयतासयतोंमें तीन दर्शनमोहनीयकी अपेक्षा असख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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